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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir बृहत्कल्पस्य विचारा: उक्कोसेण मग्गसिरबहुलदसमीउ जाव तत्थ अच्छियव्व', किं कारण एश्चिरं कालं घसंति ? अइ चिक्खल्लो वास वा पडइ तेण इधर, इहरा कत्तियपुण्णिमाए चेष निगंतव्यं ॥ एत्थ उ पणगपणग' कारणिग जा सविसईमासो। सुद्धदसमीठियाण व आसाढीपुणिमोसरणं ॥ ४२८४ ।। काऊण मासकप्पं तत्थेव ठियाणऽतीते मग्गसिरे । सालंबणाण छम्मासिओ उ जेट्ठोग्गहो होइ ॥ ४२८६ ।। अह अस्थि पयविचारो चउ पाडिवयंमि होइ निगमण। अहवा वि अणिताणं आरोवण पुष्वनिहिट्ठा ॥ ४२८७ ॥ तथा 'सवीसइराए मासे पजोसवित्ता कत्तियपुण्णिमाए पडिक्कमित्ता बिइयदिवसे निग्गयाणं पंचसत्तर' इत्यादि पर्युषणादिको विचारः ॥ वर्षातिकमे उपधिग्रहण-विचार:पुण्णमि निग्गयाणं साहम्मियखेत्तवजिए गहण । संचिग्गाण सकोस इयरे गहियमि गेहति ॥ ४२८८ ॥ चूर्णियथा-जत्थ साहम्मिपहिं न कओ वासारत्तो तत्थ गेहंति वत्थाई। अत्थ पुण की वासारत्तो तत्थ सकोसे जोयण परिहरित्ता गेण्हति । 'इयरे'त्ति-पासस्थाईतेहिं जत्थ को वासारत्तो तत्थ तेहिं गहिए गेण्हंति । किं कारणम् ? उच्यते वासातु वि गेण्हंती नेव च :नियमेण इयरे विहरती । तेहि उ सुद्धमसुद्ध गहिए गेहति सेसं ॥ ४२८९ ॥ सक्खेत्ते परखेत्ते वा मासा परिहरि-तु गेण्हति । जकारण न निगय तंपि बहिं झोसिय जाण ॥४२९० ॥ इति वर्षातिकमे उपधिग्रहणविचारः ॥ मासकल्पानन्तरोपधिग्रहणविचारः - बिइयंमि समोसरणे मासा उक्कोसगा दुवे इंति । ओमत्थग परिहाणिय पंच पंचेव य जहण्णे ॥ ४२९७ ।। For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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