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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gynam Mandir कल्पविचारा यथा बृहत्कल्पस्य विचारा: निर्बलं चणकादीत्यर्थः । आम-ऊनोदग्तेत्यर्थः । उभामे - ग्रामादौ । मंडलि- सूत्रस्येत्यर्थ: । चिलिमिलीगाथा यथा इत्थपणगं तु दीहा निहत्थ-दोनिया असई खोमा । एयमाणं गणणेकमेक्कगच्छ च जा वेढे ॥ ६५२ ॥ सूची गाथा -- उवगाहिया सूयाइया तु पक्ककए गुरुरुसेव । गच्छं च समासजा अणाय सेसेक्कसेसेसु ॥ ६६३ ॥ सूई पिप्पलउ नहलेयणं कन्नसोहणं उवग्र्गाहिओवगरण पप य पक्केका गुरुस्स भवंति । सेसा तेहि चेव कज्ज करंति । महलगच्छ व समासज्ज अणायसा-अलोद्दमया वंससिंगमई वा सेससाहूण पक्केक्का भइ । तिष्णि हत्था दंडा दाणि उ हत्थे विदंड होई | लट्ठी आयपमाणा विलट्ठि चउरंगुलेणूणा ॥ ७०० ॥ तिदुपरि फालियाणं वत्थ जो फालियां तु संसीवे । पंचण्ड' एगयरे सा पावर आणमाईणि ॥ ७८७ ॥ वेलुम वेत्तमओ दारुम वावि दंडओ तस्स । रयाण पमाणमेत्ता तस्स दसा हुति भइयच्चा ॥ ८३० ॥ जोहरणगाथेयम् । सेव गमो नियमा समणीण पायपुच्छणे दुविहे । नवरं पुण णाणत्तं चप्पडउ दंडओ तासि ॥ ८४४ ॥ पता अपि निशीथगाथा: । सम्मत्ते पुण लद्धे पलियपुहुत्तेण सावज हो । चरणांव समखया पुण सागरसंसंतरा हुंति ॥ १०६ ॥ एवं अपरिवडिए सम्मत्ते देवमणुयजम्मे । अण्णयर सेदिवज एगभवेण व सव्वाई ॥ १०७ ॥ उवसामग सासायण खयोवसमियं च वेयय खइयं । सम्मत्तं पंचविह जह लग्भइ त तहा वोच्छं ॥ ९० ॥ ४९ For Private And Personal Use Only
SR No.020506
Book TitleNishesh Siddhant Vichar Paryay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLabhsagar Gani
PublisherJainanand Pustakalay
Publication Year1973
Total Pages181
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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