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( १ )
प्रस्तावना
अनंतानंतकालथी एक सनातन नियम छे के शासननी स्थापना पूर्वे द्वादशांगीनी रचना, त्यारबाद शासन संघनी स्थापना । आधीज समजाय के जैन-शासननी भव्य इमारतना तांबाना पायारूपे जैनागम छे । संपूर्ण शासननी सुदृढ व्यवस्था आगमज्ञान पर छे। पटलु अ नहिं पण तेनी प्राप्ति माटे : अनेकविध तपयोगवहन करी ते ज्ञान मेलववानी योग्यता मेलवे छे। अने ते ज्ञानमात्रा वधतां पुण्यवान् आत्माओ आचार्य पद पर आरूढ यह त्रिकालाबाधितशासननु सुकान संभालवा भाग्यशाली बन्या छे । श्रीजिनागमनुं अध्ययन निःश्रेयसपद प्राप्तिना भव्य आदर्शने वरेला . आत्माओने अणमोल साधन छे । तेमां कशी अतिशयोक्ति नथी अ । श्री आगमज्ञान प्राप्तिनी पद्धति अने संरक्षणता ।
पूर्वकालमा आगमशास्त्रांनु अध्ययन मौखिक तु तु । बुद्धिना सागर साधुभगवंता तेने यथावत् याद राखता हता.. | कदाच स्खलना थाय तो बीजी या श्रीजी वार सांभलीने- अध्ययन करीने स्वनामवत् ते महामूला आगमरत्नोने हृदयमंदिरमां पधरावी जीवनने धन्य बनावता दता । आ ज्ञाननी प्राप्ति माटे लांबा लांबा वार थता दूर दूर देशोमां अनेक मुश्केलीओ वेठीने जता, अने अनेक वाचनाओनो लाभ लेतो हता। तो पण दुःषमकालना विषमप्रभावे मेघावी मुनिवृंदनी मेघानेा दिनानुदिन क्षीणताना अनुभव यतां शासनना शिरताज अने उत्सर्ग - अपवादना जाणकार पूज्य देवगिणिक्षमाश्रमण भगवंते वलभीपुरमां ते समयना मुख्य मुख्य ५०० आचायेने भेला करी, अनेकविध पाठोथी मेलवी श्री आगमाने पुस्तकारूढ करवानु महान् कार्य कर्यु । आधी आगमज्ञानप्राप्ति सुलभ बनी पटलुंज नहिं पण श्री जिनागमज्ञानप्राप्तिनी सरवाणी निरंतर बहेती चालु राखी । तेओश्रीनु आ कार्य जैनशासनमां प्राण पूरवासमान थयुं एम कहीए तो वधु पडतु नधी ज ।
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