SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 9
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वस्तु-स्वरूप का यज्ञार्थ प्रतिपादन न करने पर भी अन्य दर्शनों की वे एकान्त दृष्टियाँ यथार्थता का दावा करती हैं और इसका दुष्परिणाम होता है-विवाद, कलह और संघर्ष । अस्मिता के आवेश में मैं-तू' का वातावरण पैदा हो जाता है । ____ भारत के समस्त दर्शनों में जैन-दर्शन ही एक ऐसा दर्शन है, जो यथार्थ रूप में ज्ञान-प्रक्रिया का प्रतिपादन करता है और उसकी यथार्थता का मूल है 'नय. वाद ।' वह वस्तु-स्वरूप को अनेक दृष्टि- बिन्दुओं से निरखता-परखता है, गहराई में उतर कर वस्तु-तत्व का अनेक पहलुओं से विश्लेषण करता है । उसका कहना है कि जब तक विचार शैली में 'नयवाद' को प्रश्रय न दिया जाय, तब तक दृष्टि से अज्ञान का जाला साफ नहीं होता और जब तक अज्ञान का जाला साफ न हो जाय, तब तक आचारपालन के नाम पर किया गया घोर-से-घोर श्रम भी अज्ञानकष्ट बनकर रह जाता है, उससे ध्येय-प्राप्ति की और आत्म-विकास की दिशा में एक कदम भी नहीं बढ़ा जा सकता । इसीलिए प्राचार्य हेमचन्द्र ने भगवान् की स्तुति करते हुए चुनौतीपूर्ण स्वर में कहा है-"भगवन् ! अन्य साधक चाहे हजारों वर्षों तक तप करें, अथवा युग-युग तक योग-साधना करें ; परन्तु जब तक वे नय से अनुप्रा. णित आपके मार्ग का अनुसरण न करें, तब तक वे मोक्ष की इच्छा करते हुए भी मोक्ष नहीं पा सकते "परःसहस्राः शरदस्तपांसि, For Private And Personal Use Only
SR No.020502
Book TitleNaykarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Sureshchandra Shastri
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year
Total Pages95
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy