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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सात नयों का दो नयों में वर्गीकरण करते हैं द्रव्यास्तिकपर्यायास्तिकयोरन्तर्भवन्त्यमी । आदावादिचतुष्टयमन्त्ये चान्त्यास्त्रयस्ततः ॥२१॥ अर्थ ये सात नय द्रव्यास्तिक और पर्यायास्तिक-इन दो नयों में अन्तर्भूत हो जाते हैं । द्रव्यास्तिक में प्रथम के चार और पर्यायास्तिक में अन्त के तीन का समावेश होता है। विवेचन विश्व के मंच पर जितने पदार्थ दृष्टिगोचर होते हैं, वे सब एक-दूसरे से न तो सर्वथा समान ही हैं और न सर्वथा असमान ही हैं। उनमें समानता तथा असमानता-ये दोनों ही अंश विद्यमान रहते हैं। इसी विचार कोण से संसार का प्रत्येक पदार्थ सामान्य-विशेष-उभयात्मक कहलाता है । विचारशी त व्यक्ति जब उन पदार्थों के विषय में विचार-चिन्तन करता है,तो उसकी बुद्धि का झुकाव कभी उस पदार्थ के सामान्य अंश की ओर होता है और कभी विशेष अंश की ओर । सामान्य अंश को ग्रहण करने वाला विचार द्रव्यार्थिक नय और विशेष अंश को ग्रहण करने वाला ५२] For Private And Personal Use Only
SR No.020502
Book TitleNaykarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinayvijay, Sureshchandra Shastri
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year
Total Pages95
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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