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* नवतश्व *
बारसविहं तवो णि,
___ जरा य बंधो चउविगप्पो । पयई-ठिइ-अणुभाग,
प्पएसभेएहिं नायब्वो ॥३६॥ "इस गाथा में कुछ अंशोंका सम्बन्ध निर्जरातत्त्वके साथ है, अवशिष्ट अंशमें बन्धतत्वके चार भेद कहे गये हैं।"
प्रथम कहे हुये बारह प्रकारके तप हो निर्जरातत्त्वके बारह भेद हैं । प्रकृति, स्थिति, अनुभाग और बन्ध, ये चार बन्धके भेद हैं॥ ३६॥
पयइ सहावो वुत्तो,
ठिई कालावहारणं। अणुभागो रसोणेओ,
पएसो दलसंचो ॥ ३७॥ "इस गाथामें पूर्वोक्त प्रकृति आदिका स्वरूप कहा गया है।"
कर्मका स्वभाव 'प्रकृतिबन्ध' कहा जाता है; कर्म के कालका निश्चय 'स्थितिबन्ध'; कर्मका रस 'अनुभागबन्ध' और कर्मके दलका संचय, 'प्रदेशबन्ध' कहाता है । ३७।।
प्रकृतिबन्ध-जिस तरह वात, पित्त और कफके
रुप
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