________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
*निर्जरातत्त्व *
(२) आत्मद्रव्य में उसके विकार रहित सुख के अनुभवरूप पर्याय में या निरुपाधि ज्ञानरूप गुणमें आत्मानुभवरूप मावश्रुतके बलसे स्थिर होकर द्रव्य, गुण और पर्यायोंका विचार करना।
(३) तेरहवें गुणस्थानके अन्तमें मनोयोग और वचनयोगको रोकनेके बाद कामयोगको रोकने में प्रवृत्त होना।
(४)तीनों योगोंका अभाव होनेपर फिर च्युत न होनेवाला अनन्त ज्ञान, अनन्त सुखका एकरस अनुभव ।
(६) उत्सर्ग तपके द्रव्य और भावरूपसे दो भेद हैं। द्रव्य उत्सर्ग-गच्छका त्याग करके 'जिनकल्प' स्वीकार करना; अनशनव्रत लेकर शरीरका त्याग; किसी कल्पविशेषमें उपधिका त्याग; सदोष आहारका त्याग: ये सब 'द्रव्योत्सर्ग' कहलाते हैं। . ___ भावोत्सर्ग-क्रोध, मान, माया और लोभका त्याग, नरक श्रादि योनिकी आयु बाँधनेमें कारणभूत मिथ्याज्ञान
आदिको त्याग; ज्ञानके आवरण करनेवाले ज्ञानावरणीय भादि कर्मका त्याग; ये सब. 'भावोत्सर्ग' कहलाते हैं।
For Private And Personal