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* नवतत्त्व *
रौद्र-द्वेषसे किसो जीवको मारने या उसे कष्ट पहुँचानेकी चिन्ता करना; छल कपट करके दूसरेका धन लेनेकी चिन्ता करना; हिस्सेदार कुटुम्बी मर जाँय तो मैं अकेला ही मालिक बन बैठूगा ऐसी चिन्ता करना; ये सब 'शैद्रध्यान' कहाते हैं। ____धर्म-ज्ञान, दर्शन, चारित्र, वैराग्य आदिकी भावना करना; सर्वज्ञ वीतराग के उपदेश रूप सिद्धांत में सन्देह न करके उसपर पूरी श्रद्धा रखना; राग, द्वेष, क्रोध, काम, लाभ, मोह आदि, इस लोक तथा परलोक में भी दुःख देने वाले हैं ऐसा चिन्तन करना; सुख दु:ख प्राप्त होने पर हर्ष और शोक न कर पूर्वकर्म का फल मिल रहा है, ऐसा समझना; जिनेन्द्र भगवान के कहे हुये छह द्रव्यों का विचार करना; यह सब 'धर्मध्यान' कहातो है।
शुक्ल-शुक्ल ध्यानके चार भेद हैं: पृथक्त्ववितर्क सविचार, एकत्ववितर्क अविचार, सूक्ष्मक्रिया अप्रतिपाति और व्युपरतक्रिया अनिवृत्ति ।
(१) द्रव्य, गुण और पर्याय के जुदाई को पृथक्त्व कहते हैं; अपनी आत्माके शुद्ध स्वरूप का अनुभवरूप भावश्रुत, वितर्क कहलाता है और मन, वचन, और काय, इन तीन योगों में से एक योग ग्रहण कर दूसरेमें संक्रमण करना, विचार कहलाता है।
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