SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir *निर्जरातस्त्र (६६) 00000000000000000000000000000000000000000 हरण करनेवाली चीजोंसे बने हुए लडडूका स्वभाव, वात भादिको दूर करना है, उसी तरह किसो कमेका स्वभाव जीवके ज्ञानका आवरण करना, किसी कर्मका जीवके दर्शनका प्रावरण करना, किसीका स्वभाव चारित्रका आवरण करना होता है, इस स्वभावको 'प्रकृतिबन्ध' कहते हैं। ___ स्थितिबन्ध-जैसे बना हुआ लड्डू, महीने, छह महीने या वर्ष तक एक ही हालतमें रहता है, उसी तरह कोई कर्म अन्तमुहत तक रहता है, कोई सत्तर क्रोडाकोड़ी सागरोपम तक, कोई वर्ष तक, इसीको 'स्थितिबन्ध' कहते हैं। अनुभागबन्ध-जिस तरह कोई लड्डू ज्यादा मीठा होता है कोई थोड़ा, कोई अधिक कडा होता है, कोई अल्प और कोई ज्यादा तीखा होता है कोई थोड़ा, इत्यादि अनेक प्रकारके समवाला होता है, उसी तरह ग्रहण किये हुये कमदलोंमें तरतममावसे देखा जाय तो किसीको रस फल ज्यादा शुभ होता है, किसीका थोड़ा और किसीका रस-फल अधिक अशुभ होता है किसीका अल्प इत्यादि अनेक प्रकारका रस होता है, उसे 'रसबन्ध' कहते हैं । अनुभाग और रस, दोनोंका मतलब एक ही है। प्रदेशबन्ध-जैसे कोई लड्डू पावभर, कोई मापसेर For Private And Personal
SR No.020500
Book TitleNavtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1945
Total Pages107
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy