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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir *नपतत्व "द्रव्यप्राणों के दस भेद, और वे किन जीवों को कितने है. सो कहते हैं।" पणिदिन--त्तिवलूमा साऊ दम पाण चउ छ सग अट्ट। इग-दु-ति चरिदीणं, असन्नि-सन्नीण नव दम य ॥७॥ पाँच इन्द्रियाँ, तीन बल, श्वासोच्छवास और आयु, ये दस प्राण कहलाते हैं। एफेन्द्रिय को चार प्राण: द्वीन्द्रिय को छह; त्रीन्द्रिय को सात; चतुरिन्द्रिय को बाट; असंज्ञी पंचेन्द्रिय को न और संज्ञी पंचेन्द्रिय को दस प्राण होते हैं ।। ७ ॥ (१) एकेन्द्रिय के चार प्राण ये हैं;-त्वगिन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, कायबल और आयु । ( २ ) एकेन्द्रियजीव की अपेक्षा, द्वीन्द्रिय जीव के रसनेन्द्रिय और वचनवल-ये दो प्राण अधिक हैं । ( ३ ) द्वीन्द्रिय की अपेक्षा, श्रीन्द्रिय जीव को घाणेन्द्रियप्राण अधिक है। ( ४ ) श्रीन्द्रिय की अपेक्षा चतुरिन्द्रिय जीव को चक्षििन्द्रय यह एक या अधिक है। For Private And Personal
SR No.020500
Book TitleNavtattva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
PublisherAtmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
Publication Year1945
Total Pages107
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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