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* जीवतत्व* 000000000000000000000000000०००००००००००००००
श्वासोच्छ्वास बनने योग्य पुद्गलद्रव्य को ग्रहण कर उसे श्वासोच्छवास रूप में परिणत करने वाली शक्ति को श्वासोच्छ्वास पर्याप्ति' कहते हैं।
मन बनने योग्य पुद्गलद्रव्य को ग्रहण कर मनोरूप में परिणत करने वाली शक्ति को 'मनःपर्याप्ति' कहते हैं।
भाषायोग्य पुद्गलद्रव्य को ग्रहण कर भाषारूप में परिणत करने वाली शक्ति को 'भाषा पर्याप्ति' कहते हैं । __ पदार्थ के स्वरूप का बदलना परिणाम कहलाता है, जैसे-~-दूध का परिणाम दही ।
इस तरह आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मन, ये छः पर्याप्तियाँ हैं । इनमें से पहली चार पर्याप्तियाँ एकेन्द्रिय जोव को होती हैं। मनःपर्याप्ति को छोड़ बाकी की पाँच पर्यातियाँ विकलेन्द्रिय तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय जीव को होती हैं।
द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रिय जीवको 'विकलेन्द्रिय' कहते हैं । छः पर्याप्तियाँ संज्ञी पंचेन्द्रिय जीव की. होती हैं। पहली तीन पर्याप्तियाँ पूरी किये बिना कोई जोर नहीं मर सकता।
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