________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी टी. 457 张器器業業業养業整器器器器業器業職業基業紫器業業 प्ररूप्यको यथाएगे पायाइत्यादि मेकिंतमित्यादि अथ केयं व्याख्याध्याख्यायन्ने जीवादयः पदार्था अनयेति व्याख्या उपसर्गादात्त इत्यड्प्रत्ययः तथा * हिउजंति अजीवावियाहिज्नति जीवाचनीवावियाहिजंति ससमए वियाहिज्जति परसमए वियाहिजति ससमय परसमए विवाहिति लोएवियाहिज्वंति अलोएवियाहिज्जति लोयालोएवियाहिन्न विवाहमणं परित्तावायणा संखिग्जा अणुयोगदारा संखिज्जावेढा संखिज्जासिलोगा संखिजारो निनुत्तोश्रो संखिज्जाअोसंगहणीयो संखि ज्जाओपडिवत्तीयो सेणं अंगठ्याए पंचमे अंगे एगे मुयक्वधे एगेसारेगे अज्झयण सए दसउद्दे सण कालाएगसह शिष्यने उ०उपदेसने कहिवे करी उपदेस्य मे ते ए० दूम या चानना जाण एक इम पा० मानना जाग्य ए० इम ज्ञान करीने ए०एम भण्या थको एक इम चरण क. ते पिंड विशुद्यादिक ७०प०समवायंगने विषे परुष्याके पा०सामान्य प्रकारे कयाले जाण्यावत गब्दमडू से० ते ए स०सम * वायंग जाणवा 4 हिवे पांचमो अंग वखाणीछे से ते कु०के हवो वि० भगवती सूत्र विभगवतीने विषे जी जीवपदार्थ पिण तिहां कह्याके पल्पजीव पिण तिहां विकह्याले जी०जीव भने अजीव एवेडंपिग तिहां पाहि कह्याले लो लोक पिण तिहां मा० कहीयेले लो लोकने विषे कह्याके * सस्वसमयते जिन मतना सिद्धांत तेहना भाव कह्यात 50 अन्यमत ते अन्य सास्त्रना भाव पिण कह्याछे म. ते जिन मत सिहांसना प०अन्य भास्त्र ना ते विहंना भाव कह्याचे पि० ते भगवती सूत्रमध्ये प० संख्याती वाचना ते एक पाखा मध्ये संख्याती सं०संख्याता अ० अनुयोगहार संख्याता वे. विशेषसं०संख्याता ओक चतुपदादिक स संख्यातिनियुक्ति सं०संख्यातिसंग्रहणीगाथा ते संग्रह अर्थ पणेस संख्यातीप प्रतिपत्ति ते एकवेजाब दसविध दंड 默默樂器器器器器新需將器张點器業課张器器業 પુટ For Private and Personal Use Only