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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir नंदी टी० द्यते इति कथमवसीयते उच्यते इह भगवता आर्य श्यामेन प्रज्ञापनायामाहार पदेवितीयोई शके सूत्रमिदमपाठि आधार पज्जत्तीए चपज्जएणभंते कि आहारए अगाकारए गोयमानोपाहारए अणाहारएत्ति तत आहार पर्याप्त्या अपर्याप्तो विग्रह गताबेबोपपद्यते नोपपात क्षेत्रमागतोपि उपपात क्षेत्रमागतस्य प्रथमसमयएवाहारकत्वात् तत: एकसामयिका आहारपर्याप्तिनिई त्ति: यदि पुनरुपपातक्षेत्रमागतोपि आहारपर्याप्त्या अपर्याप्त: स्यात्ततः एवं सति व्याकरणसूत्वमित्यं पठेत् सिख थाहारए सिय अण्णाहारए यथा शरीरादिपर्याप्तिष सर्वासामपि च पर्याप्तीनां परिसमाप्ति कालोत 9 मुहर्तप्रमाणपर्याप्त यो विदान्त येषां ते पर्याप्ता अनादिभ्य इति मत्वर्थी योऽयप्रत्ययः ये पुन वयोग्यपर्याप्ति परिसमाप्ति विकलास्त अपर्याप्ता: ते च द्विधा लब्धा करणच तत्र ये अपर्याप्त का एव सन्तो बियन्त न पुनः खयोग्यपर्याप्तीः सर्वा अपि समर्थवाने ते लथपर्याशका तेपि नियमादाहारशरोरेन्द्रियपर्याप्ति परिसमाप्तावेव नियन्ते नार्वाक् यस्खादागामि भवायुवधवा वियन्त सर्वएव देहिनस्तच्चाहार शरीरेन्ट्रिय पर्याप्ति कंतिय मणस्साणं जद् पज्जत्तग संखिज्जवासाउय कम्मभूमिय गम्भवतिय मणुस्साणं किं सम्मदिटिपज्जत्तग संखिज्न पूर्वकोडी परांतिना पाऊखाना धणीने क कर्म भूमिना ग० गर्भज म मनुष्याने नो• न उपजे ज० जो भगवान सं० संख्यातावरसना आउखानाधणी मैंने क. कर्म भूमिना ग० गर्भज म० मनुष्यने मनः पर्याव ज्ञान उ. उपजे वली भगवाम उपजे किं० किस्य प० पर्याप्ताने सं• संख्याता व. वरसमा आउ खाना धणीने क० कर्म भूमिना ग• गर्भज म० मनुष्याने मनपर्यवज्ञान: उ. उपजे किंवा अ० अपर्याप्ता सं० संख्याता वा वरसना आउखाना धणी क. कर्म भूमिना ग० गर्भज म मनुष्याने मनपर्यवग्यान उ• उपजे गो. हे गोतमः प० छही पर्यायें करी पर्याप्ता के सं० संख्याता वा वरसना आउखाना 样养諾業兼差兼業兼差兼器業兼差兼業兼差兼差器業業著 梁諾諾諾器需器米諾諾諾諾张器装諾諾諾業業諾諾業 For Private and Personal Use Only
SR No.020495
Book TitleNandi Sutra Tika
Original Sutra AuthorN/A
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Publication Year
Total Pages512
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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