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(नाडी प्रकाश १८ )
टीका। जिसरोगी की नाडी वात करिकें दुखित पित करिके दग्ध और कफ के कोप करिके खदित होय वह रोगी थोड़े ही काल में मो न के खुले हुऐ दंत ढाढा करिकें युक्त ऐमे मुखमें जाय गा ॥ नाडी वेग बती चोहमा ज्वरात्सं जा यते नृणाम् ॥ •प्रति सूक्ष्माति वेगा द्या भीतात प्राण नाशिनी ॥ ५० ॥ टीका- नाडी वेग से चलती हो और गरम होय तो ज्वर जानना प्रत्यंत सूक्ष्म होय मोर अत्यंत वेग से चले और प्रत्यंत ठंडी होय वो नाडी प्राणों के नाश करने वाली है ॥ ५० ॥
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अन्यच
स्पंदते चैक मानेन विंश द्वारं यदा धरा ॥ स्वस्थाने नयदा न्यून रोगी जी वति नान्यथा ॥ ५९ ॥ टीका-जिस रोगी की नाडी एक संग अपने स्थान पर तीम वार फड़के तो वो रोगी जीवे नहिं प्रर्थात् शीघ्र ही मृत्यु को प्रा प्र होय ॥ ५९ ॥
अन्यच स्थिरा नाड़ी भवेद्यस्यविद्य. विद्य ति रिवेक्षते ॥ दिनेकं जीवितं तस्य द्वितीये मृत्यु रे बच ॥ ५२ ॥ टीका-जिस रोगी की जाडी स्थिर होय और बिजली के समा न रहि के चलें तिस रोगी की मायु एक दिन की है दूसरे दिन -
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