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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आरा TIT For Private and Personal Use Only समान नहीं होती, कुछ न कुन्छ भेद रहताही है वैद्य जिस स्वस्थमनुष्यकी नाडी राका तडफना है वह प्रत्येक मनुष्यकी प्रकृति, देश, काल, अवस्थाओंके भेदसै यूनानी भाषामें नाडीको नब्ज कहनेका यह कारणहै कि नब्जका अर्थ शि | मृगके बच्चेके समान जो नाडी उछलती कूदती चले उसको गिजाली कहतेहै यह पित्ताधिक्यसै होती है। | जो नाडी जलकी तरंगके समान गमनकरे उसको मोजी गति कहते । है । यह तरीको सूचित करती है। अथवा देहकी निर्बलताको सूचित करेहै। | जो नाडी कीडाके समान मंद मंद गमनकरे वो कफ और आम दो षको सूचित करती है। इस नाडीकी गतिको दूदी कहतेहै। | जैसे लकडीके ऊपर आरा चलता इसप्रकार खरदराट लिये जो नाडी ऊंगलियोंका स्पर्शकरे वो वाहर और भीतर सुजनको सूचित करती है। इस गतिको मिन्शारी गति कहतेहै । । जो नाडी चूहेकी पूछसदृश गमन करे उसको जनवल्फारगति कहतिहै । यह कफपित्तके कोपसे होती है । __ जो नाडी चैटी और मोरकी गतिके समान गमन करे उसको नुमली मी. भगति कहतेहै । ऐसी नाडी रोगीकी शीघ्र मृत्यु सूचना करती है। __ जो नाडी सलाईके समान दोनो प्रांतों में पतली और बीचमें मोटी होकर गमन करे उसको मतलीगति कहतेहैं । यह निर्बलता सूचना करती है। जो नाडी हथोडे के समान उंगलियोंको वारंवार चोट देवे उसको म- Y. तरकी गति कहतेहै । यह अत्यंत गरमीकी सूचना करतीहै । | जो नाडी गमन करते करते ठहर जावे उसको जूफिकरगति कहते है। है। यह दिलकी कम्जोरी सूचित करती है प्रायः यह शोक समय होतीहै। | जिस नाडीका टंकोरदेना जिस वख्तमें देनाउचितहै उस्सै पूर्वही जास्ती टंकोर देदेवे यह श्वासाधिक्य निर्बलतामें होती है। मूंसेकी मोर.टी शलाई हाडा शावक मृग गिजालि मोजी दुदी मिन्शारी नुमली मतली मतरकी जुलाफ वाम समान कोरदेना शोकाक्रांत विषम टं करत फिलवस्त यूनानीमतानुसार नाडी कोष्टकम्. यूनानी मतानुसार नाडीपरीक्षा कही है इसका विस्तार मैने भाषामें कहाहै ॥२०॥ अर्थ-स्वस्थ प्राणीकी निर्दोष नाडीको वाकियुल्वस्त कहतेहै यह मेने संक्षेपसे विस्तरस्तु मया प्रोक्तो भाषायां जनहेतवे । इति संक्षेपतो नाडीपरीक्षा कथिता बुधैः॥२१॥ वाकियुल्वस्तनिर्दोषा स्वस्थस्य परिकीर्तिता। नाडीदर्पणः । www.kobatirth.org । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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