SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४८) नाडीदर्पणः। यस्य नाडी तथा गच्छेन्मृति तस्याशु निर्दिशेत् ॥९॥ अर्थ-उमल चैटी (कीडी ) और मोरका नामहै अतएव इन्हो किसी गतिको उमली गति कहते हैं । जिस पुरुषकी नाडी ऐसी अर्थात् मोर चैटी कीसी चले वो प्राणी जल्दी मृत्युको प्राप्तहो ॥ ९ ॥ असिपत्रस्य पर्यायो भिन्शार इति कीर्तितः। यथास्यात्तत्क्रमः काप्टे मिन्शारी सा गतिर्भवेत् ॥१०॥ तद्गतिं धमनीधत्ते बाह्यान्तः शोथरोगिणः । अर्थ-आरेका पर्याय यूनानीमें मिन्शार है वो जैसे लकडीके ऊपर चलता है इसप्रकार नाडीके गमन करनेकी मिन्शारी गति कहतेहै । इसप्रकारकी नाडी बाहरभीतर सोथ रोगीकी चलती है ॥ १० ॥ जन्वलफारनाम्नीया गतिर्मूषकपुच्छवत् ॥ ११॥ पित्तश्लेष्मप्रकोपेण धमन्याः सम्भवेत्किल । अर्थ-जिस नाडीकी गति मूषक (चूहे ) की पुच्छसदृशहो अर्थात् एक औरसैं मोटी और दूसरी तरफ क्रमसें पतलीहो उसको जनवलफार गति कहते है। यह पित्तकफके कोपमें होती है ॥ ११ ॥ माली शलाका सहशी सूक्ष्मा धीरा बलात्ययात् ॥१२॥ गत्याघातद्वयं यस्यामधस्तादगुलेभवेत् । जुलफिकरत्तत्स्मृता पित्तश्लेष्मदग्धप्रबोधिनी ॥१३॥ अर्थ-जो नाडी सलाईके आकार अत्यंत सूक्ष्म और धीरगामिनी होय वह माली कहाती है यह बल नाश होनेसे होती है और जो नाडी मध्यमांगुलीमें दोवार आघातकरे वह पित्तकफ दग्धको बोधन करती है इसको जुलफिकरत् कहते दै॥ १२ ॥ १३ ॥ मुर्त्तइद प्रस्फुरन्तीया गतिः कोष्टस्य रूक्षताम् । विद्महत्वं च सौदावी विचारान् ज्ञापयत्यपि ॥१४॥ अर्थ-जिस नाडीके प्रस्फुरणसे कोठेको रूक्षता प्रगटहोवे उसको मुर्तइद कहते है और इसीसे मलqधका ज्ञान होताहे यह सौदावी (वादीकी ) नाडीके विचारसे जाने ॥ १४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy