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(४६)
नाडीदर्पणः। अथ यूनानीमतानुसारनाडीपरीक्षामाह ॥
नाडीनामान्तरं नजं यूनानी वैद्यके मतः।
विधास्ये तक्रमं चात्र वैद्यानां कौतुकाय च ॥१॥ अर्थ-यूनानी वैद्यनाडीको नब्ज कहते है उस नन्जका क्रम अर्थात् नब्जपरीक्षाकोमें वैद्योंके कौतुकनिमित्त लिखताहू ॥ १ ॥
हयवानीचैव नफसानी रूहद्वयमुदाहृदम् ।
हृदयस्थं शिरस्थं च देही देहसुखावहम् ॥२॥ अर्थ-रूह दो प्रकारकी है एक हयवानी दूसरी नफसानी हयवानी हृदयमें रहती है । और नफसानी मस्तकमें रहती है । ए दोनो देहधारियोंकी देहको सुखदायक है ॥ २॥
तत्सङ्गतास्तु या नाड्यः शरियानसवःक्रमात् ।
हत्पने यास्तु सल्लग्नाः समन्तात्प्रस्फुरन्ति ताः॥३॥ १ मानसिक शिराके परिवर्तनको नाडी कहते, वह मनके प्रफुल्लित और संकुचित होनेसें चलतीहै । इसका यह कारणहै कि उसके विकसित होनसें वाहरी पवन भीतर जातीहै, इसीसे हयवानोरूह जो मनमेंहै वह प्रसन्न होतीहै । और उष्ण पवनके दूरकरनेको हृत्पद्म संकुचित होताहै, इन दोनो कारणोंसैं मनुप्यके संपूर्ण देहकी चेष्टा और उसके रोग तथा स्वस्थताका ज्ञान होताहै इस नाडीके दश भेदोंसे शरीरकी चेष्टा प्रतीत होती है।
प्रथमतो यह कि यह कितनी विकसित और कितनी संकुचित होतीहै, इसके विस्तार (लंबाव ) आयत ( चोडाव ) और गंभीरादि भेदसैं नौ भेद होतेहै, अर्थात् कितनी लवी, कितनी चौडी, और कितनी गंभीर इनतीनोको अधिक न्यून और समानताके साथ प्रत्येकके गुणन करनेसें नौ भेद होजातहै । जैसै १ दीर्घ २ हख ३ समान ४ स्थूल ५ कृश और ६ समानविस्तृत ७ बहिर्गति अत्युच्च ८ अंतर्गति अतिनीच ९ उच्चनीचत्वसमान ।
१ अति लंबनाडीमें अति उष्णताके कारण रोगकी आधिक्यता प्रतीत होताहै । २ न्यूनलंबनाडीमें गरमीके न्यून होनेसैं रोगको न्यूनता प्रतीत होतीहै, ३ समान लंबनाडोमें प्रकृतिकी उष्णता यथार्थ रहतीहै, । ४ अधिक विस्तृतमें शरदी अधिक होतीहै । अतएव यह नानी अपने अनुमानसे अधिक चोडी होती है ।
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