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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३४ www.kobatirth.org नाडीदर्पणः । ष्कादिभोजने । वातपित्तार्त्तिरूपेण नाडी वहति निष्क मम् ॥ १०० ॥ अर्थ - तेल और गुडके खानेसें नाडी पुष्ट प्रतीत होती है, मांसके खानेसें नाडी लकडी के आकार चलती है. दूधपीने से मंदगतिसें चलती है । मधुर आहारसैं नाडी मेंडकके समान चलती है केला, गुड, वडा रूक्षवस्तु, और शुष्कद्रव्यादि भोजनसें जैसी वातपित्तरोग में नाडी चलती है उसप्रमाण चले है ॥ ११ ॥ १०० ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अथ रसज्ञानम् । मधुरे बर्हिगमना तिक्ते स्यालतागतिः । अम्ले कोष्णा त्वगतिः कटुके भृङ्गसन्निभा ॥ १०१ ॥ कषाये कठिना म्लांना लवणे सरला द्रुता । एवं द्वित्रिचतुर्योगे नानाधमवती धरा ॥ १०२ ॥ अर्थ - मिष्ट पदार्थ भक्षणसें नाडी मोरकीसी चाल चलती है कडुई द्रव्य भक्षण सें स्थूलगति, खट्टे पदार्थ खानेसें कुछ उष्ण और मैडकाकीगति होती है, चरपरी द्रव्य खानेसें भौरा के आकार गति होती है, कसेली द्रव्य खानेसें नाडी कठोर और म्लान होती है, निमकीन पदार्थ खानेसें सरल ( सीधी ) और जल्दी चलनेवाली होती है, इसीप्रकार भिन्न भिन्न रसके एकही समय सेवन करनेसें नाडी अनेकप्रकारकी गति . वाली होती है ॥ १०१ ॥ १०२ ॥ अम्लैश्च मधुराम्लैश्च नाडी शीता विशेषतः । चिपिटैर्भष्टद्रव्यैश्व स्थिरा मन्दतरा भवेत् ॥ १०३ ॥ कूष्माण्डमूलकैश्चैव मन्दमन्दा च नाडिका । शाकैश्च कदलैश्चैव रक्तपूव नाडीका ॥ १०४ ॥ १ तिक्ते स्यात्स्थूलता गतेः । अर्थ - खट्टे पदार्थ अथवा मधुराम्ल ( मिष्ट और खट्टामिला भोजनसें नाडी शीतल होती है चिरवा औ भुनी हुई ( चना, वोहरी ) द्रव्य भक्षणसे नाडी स्थिर और मंदगति चलती है पेठा मूली अथवा कंदपदार्थके भक्षणसें नाडी मंद मंद चलती है शाक ( पत्रपुष्पादिकका) और केलेकी फली भक्षण करनेसें नाडी रक्तपूर्णके सदृश चले है ॥ १०३ ॥ १०४ ॥ २ कप कठिनाम्वा इति वा पाठ: । For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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