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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा अर्थ-यदि नाडी तर्जनीको सर्वाश और मध्यमा ऊंगलीके चतुर्थांशमें व्याप्तहो प्रतीत होवे और मध्यमाके अवशिष्ट पादत्रय और अनामिकाके सर्वांशमें न प्रतीत होय तो उस रोगीकी तीनदिनमें मृत्यु होय ॥ ९३ ।। पादाङलगता नाडी कोष्णा वेगवती भवेत्।। पञ्चभिर्दिवसैस्तस्य मृत्युर्भवति नान्यथा ॥९४॥ ___ अर्थ-नाडी पूर्ववत् तर्जनी और मध्यमाके चतुर्थांशमें व्यापकहो जल्दी जल्दी चले और किंचिन्मात्र गरम प्रतीत होय तो उसरोगीकी चारदिनमें निश्चय मृत्युहोय ॥९॥ पादाङ्गुलगता नाडी मन्दमन्दा यदा भवेत् । पञ्चभिर्दिवसैस्तस्य मृत्युर्भवति नान्यथा ॥ ९५ ॥ अर्थ-नाडी पूर्ववत् समग्र तर्जनी और मध्यमाके चतुर्थांशमें व्याप्तहो मन्दमन्द चले तो उसरोगीकी पांचवे दिन मृत्युहोय ॥ ९५ ॥ नाडीद्वारा आयुका ज्ञान ! वामनाडी दीर्घरेखा बाहुमूले च स्पन्दते । जीवेत्पञ्चशतं वर्ष नात्र कार्या विचारणा ॥ ९६॥ अर्थ-जिस रोगी वामनाड़ी दीर्घरेखाके आकारसें भुजाकी जडमें तडफे वो १०५ वर्षजीवे इसमें संदेह नहीं ॥ ९६॥ दीर्घाकारा वामनाडी कर्णमूले च स्पन्दते। जीवेत्पञ्चशतं सार्द्ध धनिको धार्मिको भवेत् ॥ ९७॥ अर्थ-जिसकी वामनाडी आकारमें लंबी होकर कानकी जडमें प्रतीत होय वह सार्धपंचशतवर्ष जीवे और धनिक तथा धार्मिक होय ॥ १७ ॥ वामनाडी स्वल्परेखा हनुमूले च स्पन्दते। पञ्चवर्षाधिकञ्चैव जीवनं नात्रसंशयः ॥९८॥ अर्थ-जिसकी वामनाडी स्वल्परेखामें हो ठोडीकी जडमें तडफे वो पांचवर्ष अधिक जीवे इसमें संदेह नहीं ॥ ९८॥ नाडीद्वारा भीजनका ज्ञान । पुष्टिस्तैलगुडाहारे मांसे च लगुडाकृतिः। क्षीरे च स्तिमिता वेगा मधुरे भेकवद्गतिः ॥ ५९॥ रम्भागुडवटाहारे रूक्षश For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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