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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुर्वेदाक्तनाडीपरीक्षा अर्थ-वातनाडी तीव्रगति, तथा कभी मंदवहं तथा अंगमेंसैं गाढा पसीना निकले तो वह रोगी सातरात्रि नहीं वचे ॥ ८० ॥ देहे शैत्यं मुखे श्वासो नाडी तीव्रा विदाहिनी। मासाध जीवितं तस्य नाडीविज्ञातृभाषितम् ॥८१॥ . अर्थ-शरीरमें शीतलता, मुखसै अत्यंत श्वास छोडे, तथा नाडी तीव्रदाहयुक्त चले, उसका अर्धमास आयुष्यहै, ऐसे नाडीज्ञाताओंने कहाहै ॥ ८१ ॥ मुखे नाडी यदा नास्ति मध्ये शैत्यं बहिः कुमः। यदा मन्दा वहेवाडी त्रिरात्रं नैव जीवति ॥ ८२॥ अर्थ-जिस कालमें वातनाडी चले नहीं अंतर्गत शीतहो तथा बाहर ग्लानीहोकर मंदमंद नाडी चले तो वह रोगी तीनरात्रि नहीं जीवे ॥ ८२ ॥ अतिसूक्ष्मातिवेगा च शीतला च भवेद्यदि। तदा वैद्यो विजानीयात्स रोगी त्वायुषः क्षयी ॥८३॥ अर्थ-जिसकालमें नाडी अति सूक्ष्म किंवा अतिवेगवान् और शीतल वहे तो रोगी क्षीण आयुहै ऐसे वैद्य जाने ॥ ८३ ॥ विद्युद्दोगिणां नाडी दृश्यते न च दृश्यते। अकालविद्युत्पातेव स गच्छेद्यमसादनम् ॥ ८४॥ अर्थ-जिस रोगीकी नाडी कभी कभी बिजलीके समान फडकजावे और फिर अस्त होजावे, वो रोगी अकस्मात् जैसे बिजली गिरती है, इसप्रकार रोगी यमराजके घर जाय ॥ ८४ ॥ तिर्यगुष्णा च या नाडी सर्पगा वेगवत्तरा। कफपूरितकण्ठस्य जीवितं तस्य दुर्लभम् ॥ ८५॥ अर्थ-नाडी उष्ण वक्रगति तथा सर्पके समान बहुत वेगवानही, तथा कंठ कसे घिरजावे ऐसा रोगीका जीवन दुर्लभ जानना ॥ ८५ ॥ चला चलितवेगा च नासिका धारसंयुता। शीतला दृश्यते या च याममध्येच मृत्युदा ॥८६॥ अर्थ-जिसकी नाडी कांपनेवाली तथा चंचल नासिकाके श्वासोच्छासके माधारसे चलनेवाली और शीतल ऐसी प्रतीतहो वो रोगी एकप्रहरमें मरे ऐसा जानना ॥ ८६ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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