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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( २४ ) नाडीदर्पणः । वातादिकोंकी क्रम गति । वाताकगता नाडी चपला पित्तवाहिनी । स्थिरा श्लेष्मवती ज्ञेया मिश्रिते मिश्रिता भवेत् ॥ ४७ ॥ अर्थ- बात तिरछी बहती है, अतएव वातकी नाडी टेढी चलती है, अग्रि चंचल हो ऊपरको जाती है अतएव पित्तकी नाडी ऊपरकी तरफ वहती है और चपल है, जल नीचेको जाता है, इसी से प्रबल नहींहं अतएव कफकी नाडी भी स्थिर है और जो मिश्रित नाडी है उनकी गतिभी मिली हुई होती है । इस्से यह दिखाया कि द्विदोषजमें दोaiपके चिन्ह होते है, त्रिदोषमें तीनों दोषोंके चिन्ह होते हैं, कदाचित कोई प्रश्नकरोक एकही नाडी चपल और स्थिर कैसे होसकती है ? इस्सें कहते है कि समय भेद होने दोनो गति होती है ॥ ४७ ॥ वातादीकी विशेषगति । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्पजलौका दिगतिं वदन्ति विबुधाः प्रभञ्जने नाडीम् । पित्ते च काकलावकभकादिगतिं विदुः सुधियः ॥ ४८ ॥ राजहंसमयूराणां पारावतकपोतयोः । कुक्कुटादिगतिं धत्ते धमनी कफसंवृता ॥ ४९ ॥ अर्थ - सर्प और जोखकी गति पंडितजन वातकी नाडीकी गति कहते है अर्थात् जैसे सर्प और जोख टेढे तिरछे होकर चलते है उसीप्रकार वादीकी नाडी चलती है । आदि शब्द से विछूकी गतिका ग्रहण है । उसी प्रकार पित्तमें काक कौआ लावक (लवा ) और भेद (मैंडका) की गतिके सदृश नाडी चलती है अर्थात् जैसैं कौआ, लवा, और मेंडका भुदकते उछलते चलते है उसी प्रकार पित्तकी नाडी चलती है । आदिशन्दसे कुलिंग और चिडा आदिकी गतिका ग्रहणहै । एवं राजहंस ( वतक) मोर खबुतर, कपोत ( पिंडुकिया) और मुरगा इन पक्षियोंकीसी अर्थात् ए पक्षी जैसे मंदमंद गति चलते है इसप्रकार कफकी नाडी चलती है । आदिशब्दसैं हाथी और उत्तम खीकी चालका ग्रहण है अर्थात् जैसे हाथी और उत्तम स्त्री झूमती हुई मंद मंद चलती है उसी प्रकार कफकी नाडी चलती है ॥ ४८ ॥ ४९ ॥ नाडीकी चाल | मुहुः सर्पगत नाडीं मुहुर्भेकगतिं तथा । वातपित्तद्वयो- तां प्रवदन्ति विचक्षणाः ॥ ५० ॥ भुजगादिगतिञ्चैव राज For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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