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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा ११ पैर है उस कच्छपके मुखमें नाडी, पूंछ में दो, और हाथ पैरोंमें दहनी और वांई तरफ - पांच पांच नाडी जाननी ॥ ४६ ॥ फिर उसी लोककी व्याख्या करते हैं “तासांमध्ये एकेति" इस पदलिखनेका यह प्रयोजन है कि यद्यपि हाथ पैरोमें पांच पांच नाडीहै परंतु उनमें भी पुरुषके दहने हाथ पैरकी एक एक नाडी मुख्य है और स्त्रीके वाम हाथ पेरकी एक एक नाडी मुख्यहै यह अर्थाशंसे जाना जाता है अतएव वैद्यकों इन्हीकी परीक्षा करनी चाहिये जैसे लिखा है७४ वामे भागे स्त्रिया योज्या नाडी पुंसस्तु दक्षिणे || इति प्रोक्तो मया देवि सर्वदेहेषु देहिनाम् ॥ ४८ ॥ अर्थ- स्त्री वामभागकी और पुरुषके दहने भागकी नाडी देखे हेदेवि ! यह सर्वदेहधारियां में देखने की विधि मेने कही है, परंतु जो नपुंसक है उनमें प्रथम यह परीक्षाकरे कि यह स्त्री षंढ है या पुरुषषंढ पश्चात् स्त्री षंढकी वामहाथकी और पुरुष षंढके दहने हातकी नाडी देखें इनमें समानता सर्वथा नहीं होसकती, और कृत्रिम ( बनेहुए) हिजडे होते है उनकी नाडी यथा प्रकृतिमें स्थित होती है और “चरणेति" इस पदके धरनेसें कोई कहता है कि वाम पैरकी नाडीको दहनी गांठके पिछाडीके पार्श्वभागमें देखनी और दहने पैरकी नाडी वाई ग्रंथिके पिछाडीके पार्श्वमें देखनी यह श्रेष्ठपुरुषोंकी आज्ञा है कोई छः स्थानोंकी नाडी देखना लिखता है यथा ॥ ४८ ॥ अङ्गुष्टमूले करयोः पादयोर्गुल्फदेशतः ॥ कपालपार्श्वयोः षड्भ्यो नाडीभ्यो व्याधिनिर्णयः ॥ ४९ ॥ अर्थ- हाथोंकी नाडी अंगूठेकी जडमें देखे, और पैरोंकी नाडी टकनाओंके नीचे देखे, मस्तककी नाडी दोनो कनपटीयोंमें देखे, इस प्रकार इन छः स्थानकी नाडी देखने से व्याधिका यथार्थ निर्णय होता है ॥ ४९ ॥ नाभ्योष्ठपाणिपात्कण्ठनासोपान्तेषु याः स्थिता ॥ तासु प्राणस्य सञ्चारं प्रयत्नेन विभावयेत्ः ॥ ५० ॥ अर्थ - नाभी, होठ पैर, हाथ, कंठ, और नासिका के समीप भागमें जो नाडी स्थित है उनमें प्राणोंका संचारको यत्नपूर्वक जाने, अर्थात् इन स्थानोंमें सदैव प्राण पवनका संचार होता है, इसींसें अत्यंत उपद्रवमें इन स्थानो की नाडी देखनी चाहिये ॥ ५१ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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