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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा (३) अर्थ-तहां प्रथम वैद्योंको नाडीके देखनेसैही वात, पित्त, और कफजनित रोगोंका साध्यासाध्य और कष्टसाध्य सभेदविज्ञान सहजमें प्राप्त होसक्ताहै; अतएव प्रथम उसी नाडीपरीक्षाका वर्णन करतेहै । प्रथम नाडीदेखनेकी आवश्यकता दिखाते है ।। ८॥ नाडीज्ञानकी आवश्यकता। नाडीज्ञानं विना वैद्यो न लोके पूज्यतां व्रजेत् ॥ अतश्चातिप्रयत्नेन शिक्षयेद्बुद्धिमानरः॥९॥ अर्थ-नाडीज्ञान के विना वैद्य संसारमें पूज्य ( माननीय ) नहीं होता अतएव बुद्धिमान् मनुष्यको उचितहै कि नाडीज्ञानको सद्गुरुसैं अति यत्नपूर्वक सीखे अर्थात् नाडी देखनेका अनुभव करे ॥ ९ ॥ बोधहीनं यथा शास्त्रं भोजनं लवणं विना ॥ पतिहीना यथा नारी तथा नाडी विना भिषक् ॥१०॥ अर्थ-जैसे बोधविना शास्त्रपढनकी शोभा.नहीं, विना लवण भोजनके पदार्थ प्रियनहीं, और पति के विना स्त्रीकी शोभा नहीं, उसीप्रकार नाडी ज्ञानके विना वैद्यकी शोभा नहींहै ॥ १० ॥ नाडीजिह्वातवादोनां लक्षणं यो न विन्दति।। मारयत्याशुवै जन्तून्स वैद्यो न च शोभनः ॥११॥ अर्थ-जो नाडीपरीक्षा, जिव्हापरीक्षा, और स्त्रीके आर्त्तवकी परीक्षा नहीं जाने वह मूढवैद्य तत्काल रोगीयोंको मारताहै इसीकारण ऐसा मूढवेद्य उत्तम नहींहै ॥११॥ आदौ सर्वेषु रोगेषु नाडीजिहाग्रनेत्रकम् ॥ . मूत्रार्त्तवं परीक्षेत पश्चागुग्णं चिकित्सयेत् ॥ १२॥ अर्थ-वैद्य प्रथम संपूर्ण रोगोंमें नाडी, जिह्वा, नेत्र, मूत्र, और आर्त्तवकी परीक्षा कर फिर रोगीकी चिकित्सा करे ॥ १२ ॥ नाडीज्ञानं विना यो वै चिकित्सां कुरुते भिषक् ॥ स नैव लभते लक्ष्मी न च धर्म न वै यशः ॥१३॥ अर्थ-जो वैद्य विना नाडीपरीक्षाके जाने चिकित्सा करताहै वह धन, धर्म, और यशको नहीं प्राप्तहोता परंच उसको अपयशकी प्राप्ती और मूर्ख कहलाताहै ॥१३॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020491
Book TitleNadi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Dattaram Mathur
PublisherGangavishnu Krushnadas
Publication Year1867
Total Pages108
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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