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आयुर्वेदोक्तनाडीपरीक्षा
(३) अर्थ-तहां प्रथम वैद्योंको नाडीके देखनेसैही वात, पित्त, और कफजनित रोगोंका साध्यासाध्य और कष्टसाध्य सभेदविज्ञान सहजमें प्राप्त होसक्ताहै; अतएव प्रथम उसी नाडीपरीक्षाका वर्णन करतेहै । प्रथम नाडीदेखनेकी आवश्यकता दिखाते है ।। ८॥
नाडीज्ञानकी आवश्यकता। नाडीज्ञानं विना वैद्यो न लोके पूज्यतां व्रजेत् ॥
अतश्चातिप्रयत्नेन शिक्षयेद्बुद्धिमानरः॥९॥ अर्थ-नाडीज्ञान के विना वैद्य संसारमें पूज्य ( माननीय ) नहीं होता अतएव बुद्धिमान् मनुष्यको उचितहै कि नाडीज्ञानको सद्गुरुसैं अति यत्नपूर्वक सीखे अर्थात् नाडी देखनेका अनुभव करे ॥ ९ ॥
बोधहीनं यथा शास्त्रं भोजनं लवणं विना ॥
पतिहीना यथा नारी तथा नाडी विना भिषक् ॥१०॥ अर्थ-जैसे बोधविना शास्त्रपढनकी शोभा.नहीं, विना लवण भोजनके पदार्थ प्रियनहीं, और पति के विना स्त्रीकी शोभा नहीं, उसीप्रकार नाडी ज्ञानके विना वैद्यकी शोभा नहींहै ॥ १० ॥
नाडीजिह्वातवादोनां लक्षणं यो न विन्दति।।
मारयत्याशुवै जन्तून्स वैद्यो न च शोभनः ॥११॥ अर्थ-जो नाडीपरीक्षा, जिव्हापरीक्षा, और स्त्रीके आर्त्तवकी परीक्षा नहीं जाने वह मूढवैद्य तत्काल रोगीयोंको मारताहै इसीकारण ऐसा मूढवेद्य उत्तम नहींहै ॥११॥
आदौ सर्वेषु रोगेषु नाडीजिहाग्रनेत्रकम् ॥ .
मूत्रार्त्तवं परीक्षेत पश्चागुग्णं चिकित्सयेत् ॥ १२॥ अर्थ-वैद्य प्रथम संपूर्ण रोगोंमें नाडी, जिह्वा, नेत्र, मूत्र, और आर्त्तवकी परीक्षा कर फिर रोगीकी चिकित्सा करे ॥ १२ ॥
नाडीज्ञानं विना यो वै चिकित्सां कुरुते भिषक् ॥
स नैव लभते लक्ष्मी न च धर्म न वै यशः ॥१३॥ अर्थ-जो वैद्य विना नाडीपरीक्षाके जाने चिकित्सा करताहै वह धन, धर्म, और यशको नहीं प्राप्तहोता परंच उसको अपयशकी प्राप्ती और मूर्ख कहलाताहै ॥१३॥
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