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( १५ ) पतिमाकी द्रौपदीने सतारह भेदी पूजा की और "नमुथ्थुणं" पढ़ा है, सो पाठ यह है
तएणं सा दोवइ रायवर कन्ना जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ मज्जणघर मणुप्पविसइण्हायाकयबलिकम्मा कयकेउय मंगल पायंत्छित्ता सुद्धपावेसाइं वत्थाइं परिहियाई मजणघराओ पीडणिकखमइ जेणेव जिनघरे तेणेव उवागच्छइ जिनघर मणुपविसइ पविसइत्ता आलोए जिणपडिमाणं पणामं करेइ लोमहत्थयं परामुसइ एवं जहा सुरियाभो जिण पडिमाओ अचेई तहेव भाणियब् जाव धुवं डहइ धुवं डहइत्ता वामं जाणु अंचेइ अंचेइत्ता दाहिण जाणु घरणी तलंसि निहट्ट तिखुत्तो मुद्धाणं धरणीतलंसि निवेसेइ निवेसेत्ता इसि पच्चुणमइ करयल जावकटु एवं वयास नमोथ्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं जावसंपत्ताणं वंदइ नमसइ जिनघराओ पडिणिक्खमइ ॥
षष्ठ प्रमाण। श्रीमहानिशीथ सूत्र में लिखा है कि जो पुरुष जिनमदिर बनवाएगा उसको द्वादश स्वर्ग की गति प्राप्त होगी, देखलो
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