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इस में जिनमन्दिर बनवाने वाले को वारहवा देवलोक की गति का मिलना पसल है ।
ढूंढिया-हम महानिशीथ मूत्र को नहीं मानते ॥ मन्त्री-श्रीनन्दी सूत्र को आप मानते हो वा नहीं ? ' इंढिया-हां साहिब ज़रूर ॥
मन्त्री-उसी श्रीनन्दी सूत्र में श्रीमहानिशीथ का नाम लिखा है, बड़े ही शोक का स्थान है कि जिस नन्दी सूत्र को आप मानते हैं, उसके मूलपाठ में श्रीमहानिशीथ का नाम लिखा है, तो फिर आप उसको क्यों नहीं मानते ? ॥
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सप्तम प्रमाण। श्रीमहाकल्प सूत्र के पाठ से प्रयक्ष सिद्ध है कि साधु और श्रावक जिनमन्दिर में सदैव जावें इस पर श्रीगौतम स्वामीजी ने भगवान से पूछा कि यदि न जाएं तो क्या दण्ड लगता है। भगवान ने उत्तर दिया कि यदि प्रमाद के कारण न जावें तो दो व्रत का या तीन व्रत का दण्ड लगता है। फिर श्रीगौतम स्वामीने पूछा कि हे भगवन् ! क्या पौषध ब्रह्मचारी श्रावक पौषध में रहा हुआ जिनमन्दिर में जावे ? भगवान ने उत्तर दिया कि हां गौतम ! जावें ॥ फिर श्रीगौतम स्वामीजी ने भगवान से पूछा कि वह मन्दिर में किस लिये जावे, भगवान ने उत्तर दिया कि ज्ञान दर्शन चारित्र के वास्ते जावे ॥ श्रीमहा कल्प सूत्र का पाठ यह है ॥
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