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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मुंबई के जैन मन्दिर विशेष :- यह मन्दिर श्री सहस्रफणा पार्श्वनाथ जैन देरासर और उपाश्रय ट्रस्ट की तरफ से निर्मित है। परम पूज्य आ. विजय चंद्रोदयसूरीश्वरजी म. आदि मुनि भगवन्तो की पावन निश्रा में वि.सं. २०३८ का श्रावण सुद - ६ को प्रतिष्ठा हुई थी। यहाँ आरस की ७ प्रतिमाजी, पंचधातु की १०, सिद्धचक्रजी ७, अष्ट मंगल - २ तथा मंगल मूर्ति ३ बिराजमान हैं। चक्रेश्वरी व पद्मावती माताजी के अलावा दिवार पर आरस पर खुदे हुए श्री शत्रुजय, श्री गिरनार व पावापुरी तीर्थ दर्शनीय हैं। जिनालय के संचालन में (१) स्व. मोतीचन्द जवेरचंद जवेरी (२) स्व. रजनीभाई मोहनलाल जवेरी (३) अरविंदचन्द रतनचन्द जवेरी मुख्य थे अब उनके ही सुपुत्र श्री पंकजभाई मोतीचन्द जवेरी, श्री नीलेशभाई रजनीभाई जवेरी, श्री दिलीपभाई अरविन्दचन्द जवेरी ट्रस्टीयों के रुप में सेवा दे रहे हैं। विशेष सूचना :- यहाँ प्रति रविवार को दर्शन करने आनेवाले भाई-बहनो के लिये भाता की व्यवस्था हैं। समय - सुबह ८.३० - ११.३० तक। वालकेश्वर - मलबार हील (१२) श्री आदीश्वर भगवान भव्य शिखरबंदी जिनालय बाल गंगाधर खेर मार्ग, ४१ रीज रोड, तीनबत्ती, वालकेश्वर, मुंबई - ४०० ००६. टे. फोन : ऑफिस - ३६९२७२७ धनुभाई जवेरी - ३६९१२३९ विशेष :- बाबु अमीचन्द पन्नालाल श्री आदीश्वर जैन टेम्पल चेरीटेबल ट्रस्ट... इस मन्दिर का संस्थापक एवं संचालक हैं। माता कुंवरबाई श्री अमीचन्दजी को नित्य प्रेरणा देते थे। मूलनायक श्री आदीश्वर भगवान ४१" संप्रति महाराजा के समय की अंदाज दो हजार वर्ष से अधिक प्राचीन हैं। खंभात के भोयरे में थे, और सेठ को स्वप्न में दर्शन दिया और कहा मुझको ले जाओ। सेठ ने वही प्रतिमा यहाँ वालकेश्वर लाकर परम पूज्य श्री मोहनलालजी म. की शुभ निश्रा में वि. संवत् १९६० का मगसर सुद - ६ बुधवार को खुब ठाठमाठ से प्रतिष्ठा की। नीचे के गंभारो में सभी प्रतिमाजी संप्रति महाराजा के समय की हैं। इस जिनालय में आरस की ४६ प्रतिमाजी, पंच धातु के प्रतिमाजी सिद्धचक्रजी - अष्टमंगल एवं चान्दी के १५ से अधिक प्रतिमाजी सुशोभित हैं। मन्दिर में पावापुरी एवं शंखेश्वर पार्श्वनाथ मंदिर का शोकेश के अलावा लक्ष्मी, पद्मावती, सरस्वती एवं चक्रेश्वरी देवी तथा बाहर के भाग में श्री घंटाकर्ण वीर - की देहरी शोभायमान हैं। _ वि.सं. २०१६ में यहाँ के ट्रस्ट बोर्ड की अत्यंत भावभरी विनंती को स्वीकार कर पुना से विहार कर के, वालकेश्वर और मुंबई भर के जैन संघो के अजोड उपकारी, जैन शासन के महाप्रभावक युग दिवाकर पूज्यपाद आचार्य भगवंत श्री विजय धर्मसूरीश्वरजी महाराज, विशाल शिष्य परिवार के साथ अपने वर्षीतप के पारणा के लिये मुंबई के वालकेश्वर बाबु अमीचन्द पनालाल श्री आदिनाथ जिनालय के द्वार For Private and Personal Use Only
SR No.020486
Book TitleMumbai Ke Jain Mandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanvarlal M Jain
PublisherGyan Pracharak Mandal
Publication Year1999
Total Pages492
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size28 MB
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