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मुंबई के जैन मन्दिर
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सत्रह वर्ष पूर्व महानगरी बम्बई में कितने मंदिर थे, एवं वर्तमान में कितने मंदिर बन गए यह अपने आप में एक इतिहास है। इससे केवल जिन मंदिरो का ही पता नही चलेगा, अपितु मूर्तिपूजक जैन समाज व परमात्मा के प्रति श्रद्धा समर्पण की भी जानकारी प्राप्त होगी, एतदर्थ यह पुस्तक धार्मिक व सामाजिक दोनो ही दृष्टिकोणो से अत्यंत महत्व पूर्ण सिद्ध होगी। यह पुस्तक शीध्र ही प्रकाशित होकर जिज्ञासु पाठक वर्ग के हाथो में आए, ऐसी मैं शासनदेवसे प्रार्थना करता हुं। आपके इस शुभकार्य की अन्त:करण से अनुमोदना करता हूँ।
नित्यानंद सूरि का धर्मलाभ. "हलकारा के संपादकजीका शुभ सन्देश'
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प्रिय श्री, भँवरजी जैन श्री ज्ञान प्रचारक मंडळ व पुस्तकालय वरली, मुंबई - ४०००१३.
मुझे जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है कि उपरोक्त मुंबई के जैन मंदिर का द्वितीय संस्करण आप जैसे अनुभवी के संपादन में प्रकाशित हो रहा है।
आज से करीब २० वर्ष पूर्व जब मैं मुंबई की धरती पर
हलकारा' को प्रचार-प्रसार के लिये लाया था, तब आपने प्रथम संस्करण मुझे भेट स्वरुप दिया था. उक्त पुस्तक को देखने पढने के पश्चात् आपके साहस, संकलन, परिश्रम का मैने २० वर्ष पूर्व हलकारा में समीक्षात्मक उल्लेख किया था ।
आज उसी के द्वितीय संस्करण, भूतकाल में २०० मंदिर के स्थान पर वर्तमान में ५४४ मंदिरो का विवरण, चित्र आदि आपके साहस हिम्मत का संकलन है। जो मुंबई एवं मुंबई से बाहर बसे जैनियो के लिये उत्तम मार्ग दर्शन की भूमिका निभायेगा। धन्य है आपके साहस एवं संपादनको जिस के फलस्वरुप यह ग्रंथ प्रकाशित हुआ है।
शान्तीलाल रांका सम्पादक: हलकरा, मुंबई.
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