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आलोचना खंड
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द्रुम' में सबसे पहले मीरों के पदों का संग्रह मिलता है जो संख्या में लगभग ४५ पद थे। ये पद चंगाल, गुजरात और राजस्थान में प्रचलित गीतों से संग्रह किए गए थे। सं० १६६० में मुंशी देवीप्रसाद को राजपूताने में हिन्दी पुस्तकों की खोज में दो ऐसे संग्रह मिले थे जिनमें अन्य भक्तों के साथ मीरों के पद भी संग्रहीत थे । ये संग्रह भी सम्भवतः जनता में प्रचलित गीतीं के आधार पर हुए थे और ऐतिहासिक दृष्टि से 'रागकल्पद्रुम' से कुछ प्राचीन थे । हिन्दी में केवल मोरों के ही पदों का सबसे पहला संग्रह नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ से 'मीराँबाई के भजन' नाम से प्रकाशित हुआ था जिसकी द्वितीयावृत्ति सं० १६७० में हुई थी । इस छोटी सी पुस्तिका में मीरों के नाम से प्रचलित कुछ थोड़े से पदों का संग्रह था जिनमें अधिकांश मीरों की प्रामाणिक रचनाएँ न थीं । इसी समय गुजरात में एक वृहत् काव्य-संग्रह ग्रंथ 'वृहत कांव्य दोहन' के नाम से दश जिल्दों में प्रकाशित हुत्रा जिसमें मीराँ के गुजराती पदों का संग्रह था । ये पद संख्या में दो सौ से भी ऊपर थे । इसके पश्चात् वेलवेडियर प्रेस, प्रयाग से 'मीराँबाई की शब्दावली' नाम का एक प्रामाणिक संग्रह ग्रंथ प्रकाशित हुआ जिसमें सब मिलाकर १६८ पद है । इन पदों में संतो की परम्परा से प्रभावित पद ही अधिक संख्या में मिलते हैं। अस्तु, यह संग्रह भी बहुत कुछ एकांगी हो गया है। इसके पश्चात् और भी कितने छोटे-बड़े संग्रह ग्रंथ प्रकाशित हुए जिनमें प्रमुख नरोत्तमदास स्वामी की 'मीराँ-मंदाकिनी' और परशुराम चतुर्वेदी की 'मीराँबाई की पदावली' हैं। अंतिम पुस्तक बड़े परिश्रम से सम्पादित है और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग से प्रकाशित हुई है । जयपुर के पुरोहित हरिनारायण जी के पास मीराँ के लगभग ५०० पद संग्रहात हो गए हैं।
सब मिलाकर भी मीरों के नाम से प्रचलित पदों की संख्या अधिक नहीं -सम्भवतः गुजराती पदों को मिलाकर भी संख्या चार सौ के ही लगभग पहुँचेगी; परन्तु इन थोड़े से पदों में भी मीरों के रचित पदं सम्भवतः कम ही हैं। अधिकांश पदों की प्रामाणिकता में बहुत संदेह है । मीरों के जीवन-काल की घटनाओं से सम्बद्ध पदों के सम्बंध में पहिले कुछ विचार किया ज
मी० ६
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