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Achar
चौथा अध्याय
संस्कार और दीक्षा मीराँबाई के पदों में उनकी अलौकिक भक्ति भावना, अपूर्व भावोद्रेक और गम्भीर रहस्योन्मुखी प्रतिभा का अद्भुत संयोग देखकर कुछ महानुभावों ने तो उनमें पर्व जन्म का कोई संस्कार पाया और कुछ न उस युग के कितने ही सिद्धि प्राप्त संतों और महात्माओं में से किसा एक अथवा अनेक को शिक्षा
और दीक्षा का प्रभाव माना । जो लोग उनमें किसी पूर्व जन्म का संस्कार मानते थे, उन्होंने उस मधुर भाव की साकार भक्ति स्वरूपा को द्वापर युग के वदावन-विहारी भगवान् श्रीकृष्ण की सखी किसी व्रज-गोपी का अवतार माना
और जो इसे शिक्षा और दीक्षा का प्रभाव मानते थे उन्होंने क्रम से उन्हें संत रैदास, गासाई विठ्ठलनाथ, चैतन्य देव और जीव गोस्वामी की शिष्या प्रमाणित किया। __ अवतार की कल्पना कवित्वपूर्ण और सुदर तो अवश्य है, परंतु वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उसका महत्व कम है । पर यदि अवतार की कल्पना केवल जन्म गत सस्कारों को पुष्टि के लिए ही हुई हो तो मैं इससे पूर्ण रूप से सहमत हूँ। मीराँ के जन्मगत संस्कार ही उनकी अपूर्व भक्ति-भावना और काव्य-प्रतिभा के अनुकूल थे । बिना संस्कार के केवल शिक्षा और दीक्षा के सहारे आज तक कोई इतना बड़ा भक्त और कबि नहीं हुआ। कबीर, रैदास, जीव गोस्वामी प्रभृति संतों और महात्माओं के कितने हा दीक्षित शिष्य रहे होंगे' परंतु मीराँ जैसा भक्त और कवि तो उनमें एक भा नहीं हुआ । अस्तु भारतीयों का कवित्वपूर्ण शैली में चाहे उन्हें व्रज गोपा का अवतार माना जाय,चाहे पाश्चात्य वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उनमें प्रतिभा ( genius ) और संस्कार ( Intui tion ) का विकास समझा जाय, दोनों एक ही अर्थ के द्योतक हैं ।
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