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जीवनी खंड
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मिलती है । मीराँ के मेवाड़-निवास के संक्षिप्त काल में तीन राणा हुएमहाराणा सांगा (सं० १५८४ तक) राणा रत्नसिंह (सं० १५८४-८८)
और राणा विक्रमादित्य (सं० १५८८-१५६२)। अब प्रश्न यह उठता है कि इन तीन राणाओं में किस-कितने कब-कब क्या-क्या अत्याचार किए ? इतिहासकों का मत है कि राणा विक्रमादित्य ने हो मीरों को सारे कष्ट दिए थे । महाराणा सांगा अपने विविध युद्धों में इतने व्यस्त रहा करते थे कि इन घरेलू तथा छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने का उन्हें समय भी न मिलता था । खनवाँ के युद्ध में पराजित होने के कुछ ही दिनों बाद सं० १५८४ में महाराणा का मृत्यु हो गई। राणा रत्नसिंह के समय में भी मीराँ पर अधिक अत्याचार नहीं हुए, सम्भव है कि लोक लजावश साधु-संतों की संगति में कुछ बाधा पहुँचाई गई हो । रत्नसिंह एक प्रजावत्सल और सुयोग्य शासक थे, परन्तु सं० १५८८ में बूंदी के राव सूरजमल से कुछ झगड़ा हो जाने के कारण उनकी मृत्यु हो गई और राणथम्भौर से लाकर राणा विक्रमादित्य मेवाड़ के राजसिंहासन पर बिठाए । विक्रमादित्य की अवस्था उस समय चौदह वर्ष की थी ( जन्म सं० १५७४) । कहा जाता है कि राणा विक्रमादित्य ने मीरों को बहुत कष्ट दिए । विकमादित्य के समय में सारे सामंत और सारी प्रजा उनसे असंतुष्ट थी । जान पड़ता है कि एक बालक और साथ हा निर्बल शासक पाकर उसके अमात्य बीजवर्गी ने राणा की ओट ले सभी सामतों का अपमान किया होगा और उसी ने मीराँ पर भी अत्याचार किए होंगे। प्रसिद्ध भी है कि
बीजावर्गी बानियो, दूजी गूजर गौड़ ।
तीजो मिले जो दाहमो, करे टापरो चौड़। मीराँ पर जो जो अत्याचार किए गए वह एक चौदह-पंद्रह वर्ष के बच्चे की सूझ नहीं हो सकती, चाहे वह बच्चा राजदरबार में ही क्यों न पला हो । अस्तु, राणा को प्रोट लेकर बीजावर्गी ने ही मीराँ पर अत्याचार किए थे। मीरों को जो विष दिया गया था, वह भी इसा बीजावर्गी की करामात थी। मु. देवीप्रसाद ने लिखा है, "अाखिर जब राणा जी ने देखा कि रोक-टोक से कुछ
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