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जीवनी खंड
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और गाना-अतिरिक्त इनमें भी
'भक्तमाल' के समान इसमें भी वर्णित है । रसक्षेत्र वृंदावन में मीरा का निवास और प्रेम तथा भक्ति के उमंग में नाचना - इनमें एक नवीन और उपयोगी सामग्री मिलती है। इसके मीरों की भक्ति भावना की प्रशंसा की गई है। आगे चलकर देव कवि नेमीरों की माधुर्य भाव की व्यविचल भक्ति की बड़ी सुन्दर अभिव्यंजना दो कवित्तों में की। प्रियादास ने 'भक्तमाल' की टीका में २० कवित्त लिख कर मीरों के सम्बंध में प्रचलित सभी जनश्रुतियों का संग्रह किया जो घुराजसिंह - रचित 'भक्तमाला' में प्रति विस्तार के साथ मिलता है । इन सब का विचार जनश्रुतियों के अंतर्गत किया जायगा ।
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इतिहास और जनश्रुति - सत्रहवीं शताब्दी के साहित्य में मीराँबाई का थोड़ा बहुत उल्लेख तो मिल जाता है, परन्तु उस समय के लिखे गए मुसलमानों के इतिहास ग्रंथ तथा राजस्थान की ख्यातों में मीरों का नाम भी नहीं है । सम्भवतः स्त्री होने अथवा वीर राजपूती धर्म का परित्याग कर भक्ति-धर्म का स्वागत करने के कारण वे इतिहास की दृष्टि में उपेक्षित प्रमाणित हुई; परन्तु मी तो अपनी भक्ति भावना के प्रभाव से उस अविचल कीर्ति की स्वामिनी बनीं जो इतिहास की अपेक्षा नहीं करती वरन् समस्त राष्ट्र और जाति की सम्पत्ति बन जाता है और जिसे साधारण जनता कविता और गीतों, कथा और कहानियों, चमत्कृत कार्यों और लौfor प्रसंगों के रूप में सर्वदा स्मरण करती रहती है । सारांश यह कि इतिहास की सीमा पार कर मीरों काव्य और जनश्रुति का विषय बन गई।
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मीबाई के सम्बंध में उत्तरी भारत के लगभग सभी प्रांतों में अनेक जनश्रुतियाँ प्रचलित हैं | राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यदेश तथा सुदूर बंगाल तक में मीरों के सम्बंध में अनेक कथाएँ कही जाती हैं। उनकी पूर्व भक्ति भावना और जीवन-सौन्दर्य से प्रभावित होकर कवियों ने, भक्तों ने और साधारण जनता ने कितनो ही कथाओं की सृष्टि की जो मौखिक - परम्परा से
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