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जीवनी खंड बहुत कुछ पुष्टि मार्ग के पुराण हैं जिनमें अलौकिक और अतिमानुषिक बातों का समावेश है केवल एक उदाहरण पर्याप्त होगा। 'श्री प्राचार्य जी महाप्रभून के सेवक कृष्णदास मेघन छत्री तिन्की-बार्ता' के प्रथम प्रसंग में मिलता है :
'बहुर बद्रिकाश्रम ते आगें पधारे जहाँ जीव की गम्य नाहीं है। तहाँ बेदब्यास जी को स्थान है तहाँ पधारे । तब कृप्या दास सों कयौ जो तू टाड़ो रहियो। तब श्री प्राचार्य जी महाप्रभू आगे पधारे । तब वेदव्यास जी साम्हें आये । सो श्री प्राचार्य जी महाप्रभून को अपने धाम में ले आये । पाछे वेदव्यास जी ने श्री प्राचार्य जी महाप्रभून सो कह्यौ जो तुम नै।श्री भागवत की टीका कीनी है सो मोको सुनावौ। तब श्री प्राचार्य जी महाप्रभून ने जुगल गीत के अध्याय को एक श्लोक कह्यौ । सो श्लोक :
वाम वाहु कृत वाम कपोलो वलितरभ्रू धरार्पित वेणु।
कोमलांगुलि निराश्रित मार्ग गोप्यईर यति यत्र मुकुन्दः ।। या श्लोक की व्याख्यान कह्यौ सा तान दिन में सम्पूर्ण भयो । तब वेदव्यास जी ने वीनती करी जो मैं चा भागवत के व्याख्यान का अब धारना करि सकत नाही तातें अब क्षमा करी । पाछे श्री प्राचार्य जो महाप्रभून ने वेदव्यास जी सो कह्यौ जो तुम वेदांत के ऐसे सूत्र कहा कीये जो मायावाद पर अर्थ लग्यो। तब व्यास जी ने कह्यौ जो में कहा करूँ मोको अाज्ञा ही ऐसी हुती जो ऐसे अर्थ करियों । तब श्री प्राचार्य जी महाप्रभून ने कहा जो में ब्रह्मवाद पर अर्थ कियो है सो व्यास जी को सुनायो सो व्यास जो सुनकर बहुत प्रसन्न भए ।
चौरासी वैष्णवन की वातो, डाकोर संस्करण सं० १९६० पृ०८] इस वैज्ञानिक युग में इस प्रसंग की सत्यता पर कोई विश्वास नहीं कर सकता। वार्ताकार ने बल्लभ सम्प्रदाय वालों को प्रशंसा में ऐसे कितने ही प्रसंगों की अवतारणा की है, परंतु जो इस सम्प्रदाय से अलग थे और जिनका प्रभाव इस सम्प्रदाय के उत्कर्ष में बाधक प्रमाणित हो रहा था अथवा हो सकता था उनकी निन्दा और अपमान करना भी इस ग्रंथ का एक उद्देश्य जान पड़ता है। वृंदावन के रूप-सनातन के प्रभाव से ब्रज-मंडल में बल्लभ
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