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जीवनी खंड
दुष्टनि दोष बिचारि मृत्यु को उद्यम कीयां । बार न बाँको भयो, गरल अमृत ज्यो पीयो ॥ भक्ति निसान बजाय के, काहू ते नादिन लजी ।
लोक-लाज कुल शृखला तजि मीराँ गिरधर भजी ॥ इसमें मीराँ की भक्ति-भावना की प्रशंसा की गई है । 'गरल अमृत ज्या पीयों में एक अलौकिक घटना का उल्लेख किया गया है जो बिलकुल असम्भव भी नहीं कहा जा सकती। ___ 'भक्तमाल' के पश्चात् गुसांई हित हरिवंश के प्रसिद्ध विद्वान् शिष्य हरीराम व्यास की 'बानी' के पदों में कुछ समकालीन भक्तों का उल्लेख है जिनमें मीराँबाई भी एक हैं । एक पद इस प्रकार है :
बिहारहिं स्वामी बिन को गावै ? बिनु हरिबंसहिं राधिकावल्लभ को रस रीति सुनावै.? रूप सनातन बिनु का वृन्दा विपिन माधुरी पावै ? कृष्णदास बिनु गिरधर जू को को अब लाड़ लड़ावै ? मीराबाई बिनु को भक्तनि पिता जान उर लावै ? स्वारथ परमारथ जैमल बिनु को सब बंधु कहावै ? परमानंद दास विन को अब लीला गाय सुनावै ?
सूरदास बिन पद रचना को कौन कबिहि कहि श्रावै ? इस पद की ध्वनि से ऐसा जान पड़ता है कि इसकी रचना उस समय हुई थी जब इसमें उल्लिखित सभी भक्त स्वर्ग सिधार चुके थे । परंतु इसमें वर्णित सभी भक्त व्यास जी के समकालीन थे और उनसे व्यास जी का परिचय भी अवश्य रहा होगा। इस पद में हार्दिकता कूट-कूट कर भरी है जिससे स्पष्ट पता चलता है कि भक्तों की जिन विशेषताओं का उल्लेख इसमें किया गया है वे केवल सुनी-सुनाई नहीं कवि की स्वयं अनुभूत हैं । व्यास जी सं० १६२२ के आसपास किसी समय गुसाई हित हरिवंश के शिष्य हुये थे, इसके पहले वे श्रोडछा के महाराज मधुकर शाह के राजगुरु थे। अस्तु, रूप,सनातन,कृष्णदास मीराँबाई, जैमल, परमानंददास और सूरदास आदि भक्तों का परिचय उन्होंने
मी० २
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