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मीराँबाई
कवि और गायक गीतों और पदों में उन महात्माओं की कीर्ति गाते फिरते थे; वृद्धगण उनके सम्बन्ध में अनेक कथा और प्रसंग उत्सुक श्रोताओं को सुनाते रहते थे और संगीत अथवा नौटंकियों के छंदबद्ध वार्तालापों में उनके जीवन के प्रमुख प्रसंग रूपकों के रूप में प्रदर्शित किए जाते थे । गोपीचंद, पूरन भक्त,
और इकीकत राय के रूपक पंजाब में अब तक प्रचलित है संयुक्त प्रांत के पूर्वी भाग में अब तक जोगी फकीर गोपीचंद और भरथरी के गीत गा-गा कर भीख मांगते हैं। राजस्थान में मोगैंबाई के जीवन से सम्बन्ध रखनेवाले कितने ही रूपक प्रचलित रहे होंगे जो पवों और त्योहारों के अवसर पर जनता के सामने खेले जाते होंगे। साथ ही रमते योगी और फकीर, गायक और चारण, उनके सम्बंध में विविध प्रकार के गीत और पद गा गा कर जनता को मुग्ध करते रहे होंगे। स्त्रियों में मीरों का विशेष रूप से अधिक प्रचार था। कालांतर में कितने ही गीत और पद, रूपकों के कितने हा छंदबद्ध वार्तालाप मीरों के नाम से जनता में प्रचार पा गए होंगे। यह कोरा अनुमान ही नहीं है, इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण साहित्य रत्नाकर' नामक संग्रह-ग्रंथ में मिलता है । गुजरात के श्री कहान जी धर्मसिंह ने 'साहित्य-रत्नाकर' नामक दो जिल्दों में हिन्दी की प्राचीन कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया जिसकी तृतीयावृत्ति १६२६ ई० में हुई। इसके प्रथम भाग में पृ० ४१७-१८ पर मीरों बाई के नाम से तीन छंद, १ दोहा और दो कवित्त दिए गए हैं जिनमें दोनों कवित्त इटावे के प्रसिद्ध कवि देव जी की रचनाएँ हैं जो सम्भवतः मीराँ की प्रशंसा में लिखे गये थे । देव कवि के नाम पर भी कितने कवित्त और सवैया उसमें संग्रहीत हैं जिससे जान पड़ता है कि देव-रचित इन कवित्तों को संग्रहकर्ता मीराँ-रचित ही समझता था । ठोक इसी प्रकार की भूले मीरों के इन पदों के सम्बंध में भी हुई हैं । बेलवे डियर प्रेस से प्रकाशित 'मीराँबाई की शब्दावली' में 'मीबाई
और कुटुम्बियों की कहा-सुनी' के अंतर्गत जो छंदबद्ध वार्तालाप मिलते हैं, वे सम्भवतः मीराँबाई के जीवन-संम्बन्धी रूपकों और नौटंकियों के अवशेष हैं और अन्य पद भी इसी प्रकार भूल से उनकी रचना में स्थान पा गए हैं।
श्रस्तु, जिन पदों में मीरों की जीवन संबंधी बातों का स्पष्ट निर्देश मिलता
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