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जीवनी खड
पेय' बालक भेजिया जी, ये है चन्दन हार |
नाग गले में पहिरिया, म्हाँरो महलाँ भयो उजार || 1 || [ मीरा की शब्दावली, बेलबेडियर प्रेस संस्करण ५० ६५ ]
११
परन्तु 'साँप पिटारा' तथा 'सूल सेज' का उल्लेख न तो नाभादास के छप्पय में है और न प्रियादास के कवित्तो में । नाभादास ने केवल एक ही छप्पय मीराँ के सम्बन्ध में लिखा था, इसलिए सम्भव है कि स्थानाभाव के कारण वे इनका उल्लेख न कर पाए हों, परंतु प्रियादास को तो स्थान का अभाव न था। उन्होने तो दश कवित्तों में कितना ही बातों का उल्लेख किया है और यदि उनके समय में मार्ग के पास 'साँप पिटारा' भेजने तथा उनको 'सूल 'सेज' पर सुलाने की कथा का प्रचार होता अथवा उपर्युक्त दोनों पद मीरों के ही लिखे होते तो वे इनका उल्लेख करना कभी न भूलते। फिर रघुराज सिंह रचित 'भक्तमाला' में जो विविध जनश्रुतियो का अत्यधिक विस्तार मिलता है उसमें भी 'साँप पिटारा' और 'सूल सेज' का उल्लेख नहीं है । इससे यह बात निश्चित रूप से प्रमाणित हो जाती है कि उपर्युक्त दोनों पद मीरों की रचना नहीं है, वरन् मीरों की मृत्यु के बहुत दिनों पश्चात् प्रियादास के समय के उपरांत, जब भक्त मीराँ के संबंध में नए-नए कथा-प्रसंगों और गोत तथा पदों की सृष्टि हो रही थी, उस समय उनके किसी भक्त ने इन पदों की रचना करके जनता में प्रचलित करा दिया, जो कालांतर में मीगँ-रचित माने जाने लगे । फिर उपर्युक्त दोनों पदों में पहले में पिटारे का साँप शालिग्राम की मूर्ति बन जाता है, परंतु दूसरे में बासक ( वासुकि नाग ) चंदन हार के रूप में परिवर्तित होकर महल में उजाला करता है । ये दोनों परस्पर विरोधी बातें सत्य नहीं हो सकतीं, इनमें एक तो अवश्य ही सत्य है और अधिक सम्भव है कि दोनों ही सत्य हो । सच तो यह है कि ये दोनों ही पद मीरों के लिखे नहीं हैं ।
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मध्यकालीन उत्तर भारत में प्रमुख भक्तों और महापुरुषों की स्मृति अनेक गीतों, कथा-वार्ता और प्रसंगों तथा रूपकों द्वारा जीवित रखी जाती थी ।
१. सन्दूक, पिटारा । २ वाकि नाग, साँप