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जीवनी खंड
मीरा प्याला पी लिया रे, बोली दोउ कर जोर । ते मारण की करी रे, मेरो राखणहारो ओर ।।४।। अाध जोहड़ी कीच हे रे, आधे जोहड़ हौज । आधे मीरा एकलीरे, श्राधे राणा की फौज ॥५॥ काम क्रोध को डाल के रे, सील लिये हथियार । जीती मीरा एकली २, हारी राणा की धार ॥६॥ काचगिरी का चौतरा रे, बैठे साध पचास । जिनमें मीरा ऐसी दमके, लख तारों में परकास ॥ ७ ॥
[ मीरा की शब्दावली, वेलवेडियर प्रेस संस्करण पृ० ४०-४१ ] इस पद की ध्वनि कुछ ऐसी है जो इसे मीरां-रचित होने में संदेह उपस्थित करती है । विशेषकर अंतिम दो चरण 'काचगिरी का चौतरा रे इत्यादि तो मीरों की लेखनी से उद्भूत हो ही नहीं सकते । इसी प्रकार मीराँ तथा उनकी पास और ननद की बाचचीत जिन पदों में दी गई है, उनके मीराँ-रचित होने में पूर्ण संदेह है। एक उदाहरण देखिए : [ऊदा भाभी मीरा कुल ने लगाई गाल,४
ईडर गढ़ का श्राया जी अोलंबा । [ मीरा ] बाई ऊदा थारे म्हारे नातो नाहिं,
बासो बस्यां का आया जी अोलंबा ॥१॥ [ ऊदा ] भाभी मीराँ का साधाँ का संग निवार,
___ सारो सहर थाँरी निन्दा करै। [ मीरा ] बाई ऊदा करे तो पड़या मख मारो, मन लागो रमतः राम सू ॥२॥
[वही पृ० ३७-३८] ये पद तो नौटंकियों के पद्य बद्ध वार्तालाप जैसे जान पड़ते हैं। इनका मीरों द्वारा लिखा जाना किसी प्रकार सम्भव नहीं जान पड़ता।
१ बड़ा तालाब या झील । २ फौज । ३ विल्लौर । ४ कलंक । ५ उलाहना । ६ तुम्हारे घर आकर रही इसीसे उलाहना मिला ।
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