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दूसरा अध्याय आधार सामग्री
- अं... साक्ष्य-मीरों के जीवन वृत्त-विचार के लिए, सबसे पहले, उनके नाम से प्रसिद्ध पदों की ओर ध्यान जाता है। मीरों की रचनाओं में ऐसे पद पर्याप्त संख्या में मिल जाते हैं जिनमें उनकी जीवन-सम्बन्धी बातों का स्पष्ट निर्देश मिलता है । परन्तु उनकी प्रामाणिकता असंदिग्ध नहीं है । उन पदों में प्रधान रूप से दो विषयों का निर्देश मिलता है--एक तो संत रैदास तथा उनके शिष्यों के सत्संग का प्रभाव और मीरों की वैराग्य प्रवृत्ति दूसरे राणा द्वारा किए गए असफल अत्याचारों का वर्णन । काव्य-वस्तु की दृष्टि से विचार करने पर उन पदों का मीराँ द्वारा लिखा जाना असम्भव नहीं है । गोसाई तुलसीदास ने भी कवितावली और विनयपत्रिका में ऐसे छंद और पद पर्याप्त संख्या में लिखे हैं जिनमें उनकी जीवन सम्बंधी बातों का स्पष्ट निर्देश मिलता "है और उनकी प्रामाणिकता में किसी को भी संदेह नहीं है । परन्तु मीराँ के इन पदों के सम्बन्ध में संदेह होना स्वाभाविक है । कुछ पद तो ऐसे हैं जो मीरों के लिखे हो ही नहीं सकते। एक उदाहरण लीजिए ।
म्हारे सिर पर सालिगराम, राणा जी म्हारो काई करसी ॥टेक। मीरा रौँ राणा ने कही रे, सुण मीरा मोरी बात । साधों की संगत छोड़ दे रे, सखियाँ सब सकुचात ॥ १ ॥ मीरा ने सुन यों कही रे, सुन राणा जी बात । साध तो भाई बाप हमारे, सखियाँ क्यू घबरात ॥२॥ जहर का प्याला भेजिया रे, दीजो मीरा हाथ । अमृत करके पी गई रे, भली करें दीनानाथ ॥ ३ ॥
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