________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१४४
मीराँबाई
से उन्हें उपदेश और चेतावनी भी दी है। उन्होंने अपने अनुभव से देख लिया था कि संसार में जितनी वस्तुएँ हैं वे सभी नाशवान हैं । तुलसीदास ने मानस में जो लिखा है :
गो गोचर जहँ लगि मन जाई । सो सब माया जानेहु भाई । ठीक यही बात कितने सुंदर ढंग से मीराँ ने कही है :
भज मन चरण कँवल विनासी
जे ताइ दोसे धरण गगन बिच, ते ताइ सब उठ जासी । कहा भयो तीरथ व्रत कीन्हें, कहा लिए करवत कासी । देहीका गरब न करणा, माटी में मिल जासी । यो संसार चहर की बाजी, साँझ पडयाँ उठ जासी ॥ यह सारा संसार साँझ होते हो विलीन हो जाता है, संसार असार है, नश्वर है, यदि कोई अविनाशी वस्तु है तो वह केवल भगवान का चरण कमल और नाम है और मीराँ उसी से स्नेह करने का उपदेश करती है :
राम नाम रस पीजे मनुत्राँ राम नाम रस पीजे ।
तज कुसंग सतसंग बैठ नित, हरि चरचा सुण लीजे । काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह कूँ, चित से बहाय दीजे । मीरों के प्रभु गिरधर नागर, ताहि के रंग में भीजे ।
संसार की नश्वरता और भगवान के अविनाशत्व के अतिरिक्त मीराँ यह भी चेतावनी देती हैं कि भक्ति और भजन, मानव शरीर और मानव चेतना से ही सम्भव है और यह मानव शरीर बड़े भाग्य से मिलता है और वह भी केवल थोड़े समय के लिए। इसलिए इस सुग्रवसर को हाथ से जाने देना ठीक नहीं है । भवसागर से पार जाने का यही समय है और इस समय भी मानव यदि चेत रहेगा तो फिर समय पर चूक कर पछताने के सिवाय और कुछ हाथ न लगेगा | मीराँ कहतीं हैं :
नहिं ऐसो जनम बारम्बार ।
का जानूँ कछु पुण्य प्रगटे मानुसा श्रवतार |
For Private And Personal Use Only