________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्रालोचना खंड
भगवान और भक्ति के अतिरिक्त मोरों ने भगवद्भक्तों को कथा और लोला सम्बंधा पद भी गाए हैं। नरसी जी का माहरो, यदि मीराँ की ही प्रामाणिक रचना है तो उसमें भक्त नरसी मेहता के भात भरने की कथा लिखो गई है। मीरों के पदों में भगवान कृष्ण को अनन्य भक्त ब्रजगोपियों को भगवान के प्रति प्रपय लोलात्रों का बहुत सुन्दर वर्णन मिलता है। मोराँ की ही भाँति ब्रज-गोपियाँ भी भगवान् के जादू कर देने वाले सुंदर रूप पर अतिशय मुग्ध हैं इसलिये तो दधि बेचने जाकर गोपियाँ दधि का नाम भी भूल जाती हैं और श्यामसुंदर का ही रट लगाती जाती हैं :
या ब्रज में कछु देख्यो री टोना ।। टेक ।। ले मटुकी सिर चली गुजरिया, श्रागे मिले नन्द जी के छोना। दधि को नाम बिसरि ग यो प्यारा, ले लेहु रो कोई स्याम सलोना । बिन्द्रावन की कुंज गलिन में, आँख लगाइ गयो मन मोहना ॥ मीरों के प्रभु गिरधर नागर, सुन्दर स्याम सबर रस लोना ।
[ मी० पदा०पद सं० १७८] उन गोपियों के लिए पूरे ब्रज-मडल में केवल एक ही पुरुष मीराँ का गिरधर नागर था और वे सभी उस के अपूर्व मोहन रूप पर मुग्ध थीं और वह मनमोहन भी इन गोपियों से सभी प्रकार की लीलाएँ किया करता था। ये गोपियाँ कभी तो अपनी सहज नारी-प्रकृति के कारण उस मनमोहन से लजा करती है :
श्रावत मोरी गलियन में गिरधारी, मैं तो छुप गई लाज की मारी। और कभी धृष्ट मनमोहन से प्रार्थना करती हैं :
छाँडा लँगर मोरी बहियाँ गहो ना। मैं तो नार पराये घर की मेरे भरोसे गुपाल रहो ना। जो तुम मेरी बहियाँ गहत हो, नयन जोर मोरे प्राण हरोना । वृन्दाबन की कंज गलिन में, रीत छोड़ अनरीत करो ना ।।
[मी० पदा० पद मं० १७३
For Private And Personal Use Only