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आलोचना खंड
१११ इस पद की कोई तुलना ही नहीं है । स्वच्छंद और पवित्र नारी-प्रकृति के उल्लास का यह मधुर संगीत हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है।
जीवात्मा को नारी का रूपक मीरा के अतिरिक्त अन्य भक्तों और कवियों ने भी दिया है, परन्तु उन सभी ने जीवात्मा को नारी का रूपक मात्र माना, .जीवात्मा को नारी स्वीकार नहीं किया । इसका कारण यह था कि नारी के प्रति उनमें श्रद्धा और विश्वास का अभाव था। जिस प्रकार गुसाई तुलसीदास ने कामी पुरुषों की नारी के प्रति श्रासक्ति से भगवान् राम के प्रति अपनी
आसक्ति की तुलना की है, परन्तु वे स्वयं कामी पुरुषों की नारी-पासक्ति को घृणा की दृष्टि से देखते थे, उसी प्रकार 'राम की बहुरिया' कबीर ने रूपक की दृष्टि से जीवात्मा को नारी का स्वरूप तो अवश्य दिया परन्तु स्वयं नारी के प्रति श्रद्धालु न होने के कारण उसे नारी नहीं मान सके । नारी-जीवन के मुख्य दो पक्ष हैं--एक है उसका निर्वल पक्ष, दूसरा सबल । नारी का अबला. पन और असमर्थता, अशीच और अज्ञानता, बाह्य कोमलता और आवरण उसके निर्वल पक्ष हैं; दूसरी ओर उसका विश्वास और निश्चल प्रेम, करुणा
और क्षमा, धैर्य और कष्ट-सहिष्णुता उसके सबल पक्ष हैं । कवि प्रसाद ने 'कामायनी' में श्रद्धा से भी कहलाया है:
यह अाज समझ तो पाई हूँ, मैं दुर्बलता में नारी हूँ।
अवयव की सुंदर कोमलता, लेकर मैं सबसे हारी हूँ॥ यह नारी का निर्बल पक्ष है । दूसरी ओर वही श्रद्धा जब कहती है : not bid me undertake new conquests- But make me the gardener of your ffower garden
Queen--What will your duties be?
Servant--The service of your idle days. I will keep fresh the grassy path where you walk in the morning, where your foot will be greeted with praise at every step by flowers eager for death ( Gardener The first song ) १ कामिहिं नारि पियारि जिमि, लोभिहिं प्रिय जिमि दाम ।
त्यों रघुबीर निरन्तर प्रिय लागर्हि मोहिं राम ।।
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