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मीराँबाई
निकट होना उसकी प्रमुख विशेषता समझी जायगी । बंगाल और मिथिला प्रांत में वैष्णव कवि जीवन के निकट अवश्य पहुँच गये थे परन्तु वे भी जीवन के इतना निकट नहीं पहुँच सके जितना मध्यदेश के महाकवि सूर, तुलसी, मीराँ और कबीर पहुँच सके थे। बात यह थी कि भक्त होते हुए भी वे कवि. गण नायिका-भेद की परम्परा से एक दम मुक्त न हो सके थे, परन्तु सूर, तुलसी, मीराँ और कबीर उस परम्परा से एकदम मुक्त थे। इनमें मीराँ और कबीर तो सभी साहित्यिक परम्पराओं से मुक्त थे ।
. गुसाई तुलसीदास ने सम्पूर्ण हिन्दू-समाज को रामचरित-मानस का विषय बनाया। क्षत्रिय जाति में प्रसिद्ध रघुवंश में जन्म लेकर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम ने त्रैलोक्य-विजयी महापराक्रमी दुरन्तः राक्षसराज रावण, कुम्भकर्ण, मेघनाद, कबंध और विराध प्रभृति का हो बध नहीं किया, गो. ब्राह्मणों का प्रतिपालन भी किया; वशिष्ठ और विश्वामित्र, अत्रि और अगस्त, सुतीक्ष्ण और वाल्मीकि श्रादि महर्षिगणों को अपने शील धर्म से प्रसन्न कर उनके स्नेह भाजन भी बने; महाराज दशरथ और विदेहराज जनक के सत्य धर्म की रक्षा भी की; सुग्रीव और विभीषण, जामवंत और जटायु से मैत्रीधर्म का निर्वाह भी किया; निषाद और हनुमान की सेवा ग्रहण की; शवरी पर विशेष कृपाकर उसका अातिथ्य स्वीकार किया; जनकपुर के निवासियों और वन-यात्रा करते समय मार्ग में ग्राम-बंधुत्रों को अपने शील सौन्दर्य से मुग्ध किया; और माता, बंधु, पत्नी तथा प्रजा सबसे समुचित शील धर्म का निर्वाह कर वे हिन्दू समाज के प्रादर्श और आराध्य बने । सच तो यह है कि गुसाई तुलसीदास ने सम्पूर्ण हिन्दु-समाज को 'राममय' कर दिया।
सूरदास ने सम्पूर्ण हिन्दू जाति को नहीं केवल गोकुल गाँव के एक छोटे से समाज को लिया । गो,गोप और गोपियों के बीच मनमोहन श्याम ने जो रस की धारा उमड़ाई, वह केवल गोकुल तक ही सीमित न रह सकी, वरन् समस्त भारत उस रस में निमग्न हो गया । अंधे कवि सूरदार की दृष्टि उस व्यापक समाज की ओर नहीं गई जहाँ गुसाई तुलसीदास ने अपने भगवान् राम को
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