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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जन्म नहीं हुग्रा क्योंकि उसकी सृष्टि का कोई कारण नहीं है । एकमात्र 'सत्य' यही है कि मष्टि का कोई अस्तित्व नहीं है ।। उपासनाश्रितो धर्मो जाते बाणि वर्तते ।। प्रागुत्पत्ते रजं सर्व तेनासौ कृपणाः स्मृताः ॥१॥ उपासना-मार्ग को अपनाने वाला जीव अपने आप को उस 'ब्रह्म' से उत्पन्न हुया मानता है जिसको वह व्यक्त मानता है । इस धारणा वाला जीव संकुचित बुद्धि वाला कहा जाता है क्योंकि वह सृष्टि की रचना से पूर्व परम-तत्त्व को अजात मानता है । __ इस अध्याय के पहले ही मंत्र में किसी प्रकार की उदारता दिखाये बिना ऐसे परमात्म-भाव की निन्दा की गयी है जो बाल साधक के लिए कोई स्थान नहीं रखता; बाद में यह बताया गया है कि वह साधक किस भावना को लिये हुए इस उत्तमावस्था को प्राप्त करता है। इससे यह न समझना चाहिए कि भक्ति जैसा मरल एवं पवित्र मार्ग, जिसकी यहाँ निन्दा की गयी है, प्रभावहीन है। भक्ति-मार्ग पर चलने के बाद ही कोई व्यक्ति वेदान्त के महान् शास्त्र को ठीक प्रकार समझने की आशा रख सकता है । यह प्रन्थ अध्यात्म-विद्या के उच्च कोटि के उन साधकों के लिए लिखा गया है जो मन तथा बद्धि के उपकरणों से सम्बन्धित सभी उन्नतशील प्रयासों में सफलता प्राप्त कर चके हैं। ऐसे विवेक-पूर्ण उन्नत साधकों को उसी (भक्ति के) मार्ग पर चलते रहने का परामर्श नहीं दिया जा सकता । उनकी इस महान् यात्रा में एक वह समय आता है जब परिपक्वता होने पर उनके लिए निम्न श्रेणी के साधक का त्याग करके अाने वाले उच्च अभ्यास को अपनाना अनिवार्य हो जाता है। यह क्रिया तो उस विद्यार्थी के समान है जो वर्ष भर परिश्रम करने के बाद उत्तीर्ण घोषित होने पर भी ऊँची श्रेणी में बैठने से इन्कार कर देता है क्योंकि उसे अपने अध्यापक अथवा उस दर्जे से विशेष लगाव हो चुका है । ऐसे अदूरदर्शी एवं मूर्ख विद्यार्थी को बलपूर्वक दूसरी श्रेणी में भेजना पड़ेगा क्योंकि यदि उसे उसी श्रेणी में रहने दिया गया तो वह न केवल अपना समय व्यर्थ नष्ट करेगा बल्कि अपने नये सहपाठियों की उन्नति में भी बाधक रहेगा। For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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