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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) जीवात्मा इन्द्रियों तथा मन की सहायता से स्वरचित स्वप्न-जगत् में प्रवेश करके विविध नाम-रूप पदार्थों का अनुभव करता है। वस्तुतः यह (जीवात्मा) स्वयं इनकी व्यवस्था करता है और इसकी इच्छा सम्बन्धित व्यक्ति की अव्यवत वासनामों पर निर्भर होती है। श्री गौड़पद ने इस सूक्ष्म भाव को इस संक्षिप्त उक्ति द्वारा बड़े चातुर्य से वर्णन किया है - "किसी वस्तु की हमें उतनी ही स्मृति होती है जितना उसका ज्ञान ।" यह एक महान् मनोवैज्ञानिक तथ्य है जिसमें अमूल्य रहस्य निहित है । घटना-क्रम, जो हमें कर्म-बन्धन में फंसाये रखता है, इस प्रकार समझाया जा सकता है । आइए, इसे एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करें । एक ग्रामीण, जो कभी सिनेमा घर में नहीं गया, अपने मन में कई आकाँक्षाएँ रखता है परन्तु उसकी इन इच्छाओं में सिनेमा घर जाने की प्राकाँक्षा का समावेश नहीं होगा । यह ठीक इस तरह होगा जैसे हम दिल्ली में रहते हुए अनेक इच्छाएँ रखते हैं किन्तु इनमें बर्फ पर चलने की इच्छा का अस्तित्व नहीं रह सकता। यदि यह ग्रामीण किसी नगर में आकर बार-बार सिनेमा के विषय में बातें सुने तो उसमें सिनेमा की भावना का संचार हो जायेगा और तब वह सिनेमा देखने के लिए वहाँ से चल पड़ेगा । सिनेमा घर से लौटने पर उसे उस मनो-विनोद का ज्ञान हो जायेगा और बाद में वह सिनेमा से सम्बन्धित अपने ज्ञान द्वारा प्रेरित हो कर रजत-पट के आह्लादकारी चित्र देखने के लिए सिनेमा घर जाने लगेगा। इस तरह हम देखते हैं कि उसकी स्मृति का नियंत्रण तथा निदेश उसके 'अनुभूत' ज्ञान द्वारा होता है। ___ अब वह ग्रामीण सिनेमा घर जाने तथा उससे आनन्द लेने, जो 'कारण' और 'कार्य' है, की दोनों क्रियाओं को परस्पर मिला देता है । तदनन्तर यह जिस क्षण परिणाम की प्राप्ति का इच्छुक होगा For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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