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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०६ ) प्रभावश्च रथादीनां श्रूयते न्यायपूर्वकम । वैतथ्यं तेन वै प्राप्तं स्वप्न पाहुः प्रकाशितम् ॥३॥ तर्क तथा युक्ति को अपने समक्ष रख कर 'श्रुति' ने उन रथ आदि की सत्ता को स्वीकार नहीं किया है जिन्हें स्वप्न-द्रष्टा ने स्वप्न में देखा । अतः (महान् ) द्रष्टाओं ने 'श्रुति' द्वारा कथित स्वप्न के अनुभवों के मिथ्यात्व का समर्थन किया है । इस भाव की तर्क और युक्ति से भी पुष्टि होती है । 'बृहदारण्यक उपनिषद्' में कहा गया है कि स्वप्न में देखे गये रथ आदि में कोई वास्तविकता नहीं पायी जाती। यहाँ श्री गौड़पाद ने इस तथ्य का उल्लेख करते हुए यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि स्वप्न का कोई अस्तित्व नहीं है । यह बात उन व्यक्तियों के लिए कही गयी है जो स्वप्न की सत्ता में विश्वास रखते हैं। जिन 'द्रष्टानों' ने पूर्ण साक्षीभाव से संसार के पदार्थों का विश्लेषण करके इस पर मनन किया है उनकी दृष्टि में ये दृष्ट पदार्थ मिथ्या हैं । श्री शंकराचार्य ने भी अपनी 'ब्रह्म ज्ञानावली' में इस विचार की पुष्टि की है । उनके विचार में समूचे दृष्ट पदार्थमय जगत् को दो भागों में बाँटा जा सकता है -- 'दृष्ट पदार्थ' और 'द्रष्टा का जगत्' । वेदान्त ने कहा है कि द्रष्टा ही सनातन-तत्त्व है और दृष्ट-पदार्थ प्रारोपमात्र हैं । इससे यह समझना उचित होगा कि न केवल स्वप्न में दिखायी देने वाली वस्तुएँ अवास्तविक हैं बल्कि वे सभी पदार्थ मिथ्या हैं जिन्हें हम जाग्रतावस्था में इन्द्रियों के द्वारा देखते हैं । इससे यह सिद्ध हुआ कि ये शरीर, मन और बुद्धि भी मिथ्या पदार्थ हैं जो हमारे वास्तविक स्वरूप आत्मा को हमसे छिपाये रखते हैं । अन्तःस्थानत्त भेदानां तस्माजागरितेस्मृतम् । यथा तत्र तथा स्वप्ने संवृतत्वेन भिद्यते ॥४॥ स्वप्न में दिखायी देने वाले विविध पदार्थ मिथ्या हैं क्योंकि For Private and Personal Use Only
SR No.020471
Book TitleMandukya Karika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChinmayanand Swami
PublisherSheelapuri
Publication Year
Total Pages359
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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