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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir जातीय युद्धका प्रारम्भ । ५५ हुए । छत्रसाल उनकी सेनाके बीचसे निकल गये । इतना ही नहीं, उन्होंने सिरौजके अन्तर्गत तिवरी ठिकानेको लूट लिया और वहाँसे चौथ लेकर तब पिण्ड छोड़ा। चौथकी प्रथा महरठोंने निकाली थी । जब शिवाजी किसी प्रान्तको जीतलेते थे परन्तु किसी कारणसे उसको अपने राज्यमें नहीं मिलाया चाहते थे तो उससे कुछ कर लेते थे। यह कर दो प्रकारका होता था। यातो वह उस प्रान्तकी वार्षिक आयका दशांश होता था और या चतुर्थांश । दर्शाश करको सरदेशमुखी और चतुर्थांशको चौथ कहते थे। चौथ लेना छत्रसाल दक्षिणमें शिवाजीके यहाँ रहकर सीखाये थे और इस युकिसे इन्होंने कई बार काम लिया। इससे धन मिलता था पर लोगोंके हृदयमें डर बैठ जाता था और दूरके प्रान्तोंपर शासन करनेमें जो असुबिधा होती है उससे भी सस्तेमें ही छुटकारा मिल जाता था। मुहम्मद हाशिमको कुछ कालके लिये चुपकरके इन्होंने धामुनीकी यात्रा की। यह वह प्रान्त था जहाँ इनके स्वनाम: धन्य पिता राव चम्पतकी मृत्यु हुई थी। यहींके जागीरदारोंने उस महापुरुषको धोखा देकर मुसलमानोंसे घिरवा दिया था। इनको दण्ड देनेमें देशसेवा भी होती थी और पितृहन्ताओंसे बदला भी निकलता था । धामुनीवाले भी छत्रसालके हार्दिक भावोंको समझते थे । उन्होंने अपने बचावका बहुत कुछ प्रबन्ध कर रखा था। एक सप्ताहसे ऊपर घोर संग्राम हुआ। अन्तमें उनकी हार हुई और उन्हें छत्रसालकी शरणमें आना पड़ा। प्राण तो बचगये परन्तु धन बहुत देना पड़ा और चौथ देनेकी प्रतिक्षा करनी पड़ी। धामुनीके पीछे मैहरकी बारी आयी। राजा तो बालक था For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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