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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir महाराज छत्रसाल । का रङ्ग न चढ़ने दिया। उनके पूज्य पिताको इस बातकी प्रतीति थी और मरते समयतक उनको इस बातका शोक रहा । अन्तमें अवसर पाते ही अमरसिंहने अपनी प्रकृतिको स्वच्छन्दता प्रदान की और उस जातिगौरवको, जिसके लिये सहस्रो शिशोदिया पुरुषों और स्त्रियोंने अपना रक्त बहाया था, मिट्टी में मिला दिया। ___ अस्तु, छत्रसाल इस प्रकृतिके पुरुष न थे। वे अधिकांश बातोंमें अपने पिताके अनुगुणी थे और जो कष्ट और बालकोंके जीवनको दुःखमय बना देते उनको वे कष्टसे प्रतीत ही न होते थे। ___जब इनकी अवस्था सात वर्षकी हुई तो इनके पिताने इनको कुछ नियमित शिक्षा दिलवाना उचित समझा। इसका प्रबन्ध वहाँ जङ्गलमें तो हो नहीं सकता था, इसलिये उन्होंने इनको फिर नानिहाल भेज दिया। इसके दो ही महीन पीछे उनकी मृत्यु हुई । इस घटनासे बालकके हृदयपर क्या आघात हुआ होगा इसके लिखने की कोई आवश्यकता नहीं, पर हाँ, बड़े होनेपर इस बातने मुसलमानों के ऊपर जो इनको क्रोध था उसे अवश्य और भी बढ़ाया होगा। इसके थोड़े ही दिनोंके पीछे यही लीला पञ्जाबमें हुई, जबकि गुरु तेगबहादुरकी मृत्युने उनके पुत्र सिक्योंके दशम गुरु गोविन्दसिंह जीके हृदयमे प्रचण्ड क्रोधाग्नि प्रज्वलित करके सिक्खोंकी उन्नतिकी नींव डाली। मामाके यहाँ छत्रसाल लगभग छः वर्षतक रहे। यहाँ उन्होंने कुछ थोडासा भाषाका शान और कुछ गणितकी सरल शिक्षा प्राप्त की। यद्यपि छः वर्षका समय इतना था कि इसमें बहुत कुछ विद्या पढ़ी जा सकती थी; परन्तु उस समय बुन्दे For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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