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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चम्पत राय । साथ रही सही आशालता भी मुरझा गयी। राषके हृदयको हर्ष देनेवाली इस समय केवल एक बात थी। उन्होंने अपनी प्रतिज्ञाको निबाह लिया था और सहस्र कष्टोंको सह कर भी अपने प्राणप्रिय स्वातंत्र्यको बचाया था। यदि इस समय वे चाहते तो मुसलमानोंका सम्मान-भाजन बनना कोई कठिन बात न थी परन्तु अब उन्होंने इस बातको अधम समझ कर छोड़ दिया था। वे अब प्राणरक्षाके लिये नीतिका प्राश्रय लेना भी कायरता समझने लगे थे और मुसलमानोंकी कृतज्ञताका परिचय भी पर्याप्त पा चुके थे। अस्तु, इसी प्रकार घूमते फिरते एक बार संवत् १७१३में रावजी कुछ साथियोंके साथ बहुतसे मुगलों द्वारा घर लिये गये। इन मुग़लोको इनका पता पहाड़सिंहजीकी कृपासे लगा था। उस समय रानी भी इनके साथ ही थीं; पर सौभाग्य की बात यह थी कि पुत्र छत्रसाल उस अवसरपर वहाँ उपस्थित न था, नहीं तो इस जीवनीके लिखे जानेका शायद अवसर ही न पाना। रचकर निकल जाना असम्भव था; क्योंकि शत्रुओं की संख्या अधिक थी और उन्होंने चारों ओरसे भली भाँति प्रबन्ध कर रक्खा था कि कोई कहींसे निकल न जाय । यरनोंसे हार मान कर उनको आत्मसमर्पण करना इन वीर पुरुषों को स्वप्नमें भी अभीष्ट न था। अर्थात् सिवाय युद्ध के और दूसरी कोई बात सम्भव थी ही नहीं। युद्ध श्रारम्भ हुश्रा; पर ऐसी लड़ाई कितनी देरतक चल सकती है ? पचास या साठ व्यक्ति एक सेनासे कबतक लड़ सकते हैं ? अन्तमें रावजीके प्रायः सभी सिपाही हत हुए और वे भी घायल हो कर गिर पड़े। इस समय रानीने बड़े धैर्य और बुद्धिमत्ताका काम किया । उन्होंने देखा कि अब For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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