________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
महाराज छत्रसाल ।
यवनके ऊँच नीच समझानेसे देशप्रेमका नया अङ्कर तत्काल ही मर गया।
परन्तु कुमन्त्रणा यहींतक समाप्त नहीं हुई। महाराज पहाड़सिंह यदि चम्पत रायके साथ योग देनसे पराङमुख होकर रह जाते तो कुछ ऐसी हानि न थी। वे उल्टे उस वीर पुरुषके शत्रु हो गये । उनकी समझमें यह बात जम गयो कि चम्पत राय मुझसे द्रोह करता है और इस समय स्वकार्य-साधनके निमित्त मुझे मिलाना चाहता है; पीछे अवसर पाकर मुझे धोखा देकर श्राप निःसन्देह स्वतंत्र राजा बनेगा। फल यह हुआ कि उन्होंने चम्पत रायको विष देनेका प्रयत्न किया। यह बात किसी प्रकार चम्पत रायको ज्ञात हो गयी और प्रयत्न निष्फल गया। परन्तु इसका फल बहुत ही बुरा हुा । चम्पत राय वहाँसे चले आये और उस दिनसे इनसे और ओरछावालोसे घोर विरोध हो गया।
स्वदेशोन्नतिके विषयमें विजातियों और विधम्मियोसे परामर्श करने और अपनी विवेकबुद्धिसे काम न लेकर उनकी ही बातोंको सर्वथा मान लेनेसे जो हानि हो सकती है उसका उदाहरण इससे बढ़कर मिलना कठिन है। चम्पत राव और पहाड़सिंह दोनों एक वंशमें उत्पन्न हुए थे पर अब इन दोनोंमें वैमनस्यका भाव प्रा खड़ा हुआ। यह भाव इन्हीं दोनोंतक न रहा, प्रत्युत् दोनोंके वंशजों में कई पीढ़ियोंतक चला गया और आपस में जो सौहाई और सहानुभूति होनी चाहिये थी उसका सत्यानाश करता रहा। दोनों कुलवालोको चेत हुआ तो उस समय जबकि अपनी इस जागृतिले वे बहुत लाभ नहीं उठा सकते थे। पर यदि बात यहींतक रह जाती तो भी कुशल था यद्यपि यह झगड़ा
For Private And Personal