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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir चम्पत राय। सहमत थे, उन्होंने अपना लूटमारका कार्य फिर प्रारम्भ कर दिया। पहिलेले और अबसे भेद केवल इतना था कि इस समय वे मुग़लों और उनसे शासित प्रान्तोंको अपना लक्ष्य बनाते थे। दूर दूरतक गाँव उजाड़ हो गये और मुग़ल सूबेदारोंके नाकों दम हो गया । परन्तु चम्पत रावका हाथ पाना कठिन था क्योंकि वे इतने दिनतक इसी कामको करते करते बड़े हो कुशल हो गये थे और जङ्गल और पहाड़ोंके सभी दुर्गम मार्ग उनको ज्ञात थे। प्रजावर्गको उनसे ऐसी सहानु. भूति थी कि सब ही उनकी गुप्तरूपसे सहायता करते थे। ___अतः इस कार्य में उनको बहुत कुछ सफलता हुई । परन्तु • केवल दो चार गाँव उजाड़ने यो दस बीस जगह डाका मारनेसे देश स्वतंत्र नहीं किया जा सकता। इस कार्य के लिये अधिक प्रबल सामग्रीकी आवश्यकता होती है और उसके लिये त्यागकी भी अधिक मात्रा चाहिये। ___ यह सोचकर संवत् १७०२ में राव चम्पतने ओरछा नरेश महाराज पहाड़सिंहको अपनी ओर मिलाना चाहा । उन्होंने यह विचारा कि यदि ओरछाका बल अपनी ओर हो जाय तो सफलताकी सम्भावना बढ़ जाय । वे महाराजा पहाड़सिंहसे मिले और ऐसा कहा जाता है कि उनके कथनका प्रभाव यहाँतक पड़ा कि महाराज उनसे सहमत हुए और जातीय गौरवका पुनरुद्धार करने के लिये प्रस्तुत हुए। परन्तु उनका मंत्री मुसलमान था। जब उसने उनके इस विचारको सुना तो स्वभावतः उसे चिन्ता हुई और अन्तमें उसने महाराजको समझा बुझाकर इधरसे विमुख कर दिया। वे मुग़लोके आश्रित तो थे ही, उनमें दृढ़ साहस और जातीयताका होना एक प्रकार असम्भव नहीं तो कठिन तो अवश्य ही था। उस For Private And Personal
SR No.020463
Book TitleMaharaj Chatrasal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSampurnanand
PublisherGranth Prakashak Samiti
Publication Year1917
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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