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चम्पत राय ।
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अस्तु परन्तु देवीसिंह के गद्दीपर बैठने से शान्त न हुए देशमें अब भी कई स्वातंत्र्यप्रेमी बुंदेले थे जिनके नेता हमारे नायक छत्रसाल के पिता चम्पत राय ( या राव ) थे । इन्होंने मुग़लोंको यहाँतक तक किया कि अन्तमें संवत् १६६८ ( सन् १६४१) - में शाहजहाँने विवश होकर बीरसिंह देवके लड़के पहाड़ सिंहको ओरछेकी गद्दीपर बैठाया । इनके पहिले जबतक देवीसिंह गद्दीपर था बँदेले जुझारसिंहके शिशुपुत्र पृथ्विराजको राजा मानकर लड़ते रहे । यह बालक अन्तमें पकड़ कर ग्वालियर के किलेमें कैद कर दिया गया ।
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इन्हीं महाराजा पहाड़सिंहके वंशमें अबतक ओरछेकी गद्दी है ।
३. चम्पत राय ।
जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है महाराजा रुद्रप्रताप के बारह लड़के थे । तृतीय पुत्रका नाम उदद्याजीत था। इनको महोबाकी जागीर मिली थी। उदयाजीतको छः लड़के हुए । इनमें सबसे छोटे का नाम प्रेमचन्द्र था। प्रेमचन्द्रके तीन लड़के थे, जिनमें से मँझले पुत्र भगवानदास के दो पुत्रोंमें लघु पुत्र चम्पत रायजी थे । जागीर कुल १२००० की तो थी ही, इनके पासतक पहुँचते पहुँचते उसके ३६ भाग हो चुके थे अर्थात् इनको १२००० x ६ या लगभग ३५० ) सालकी जागीर मिली ।
उद्द
यह जागीर इतनी कम थी कि एक भद्र कुटुम्बका इसकी आयसे पालन होना असम्भव था । यों तो सन्तोषसे काम लेनेसे थोड़ी पूँजीसे भी बहुत कुछ काम चल सकता है; परन्तु - असन्तुष्टा द्विजा नष्टा, तुष्टा नष्टा नराधिपाः ।
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